
मुझे संजीदा लोग आज भी पसंद हैं ...
मेरी कुछ आदतें, आइनों ने बिगाड़ रखी है ...
ये दुनिया जब भी मुस्कुराकर मिलती है ...
सच कहूं, तुम्हारी कमी बहुत खलती है ...
पत्थर सिर्फ राहों में ही नहीं थे....
कुछ दोस्तों ने भी हाथों में उठा रखे थे
स्टेशन पर उस चाय बेचने वाले को ,
ट्रेन कि हर खिड़की से उम्मीद होती है ...
जब सुबह होता है
शाम चली जाती है।
दीवारों से दोस्ती रखना ...
आख़िर में तस्वीरें, ये ही संभालतीं है..
तुम भी इसी हवा में साँस ले रही होंगी कहीं ...
चलो कुछ तो है एक जैसा हम में ....
टिकेटें लेकर बैठें हैं मेरी ज़िन्दगी की कुछ लोग
तमाशा भी भरपूर होना चाहिए ....
अभी अभी घर लौटा हूं......
अपना कुछ वक़्त बेच कर......
घर मेरा भूखा भूखा सा रहा..
दफ्तर म
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