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Childreans's Day Poetry | Kavishala

जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया 

बच्चों के स्कूल में शायद तुम से मिली नहीं है दुनिया 

[निदा फ़ाज़ली]


आता है याद मुझ को स्कूल का ज़माना

वो दोस्तों की सोहबत वो क़हक़हे लगाना

अनवर अज़ीज़ राजू मुन्नू के साथ मिल कर

वो तालियाँ बजाना बंदर को मुँह चिड़ाना

रो रो के माँगना वो अम्मी से रोज़ पैसे

जा जा के होटलों में बर्फ़ी मलाई खाना

पढ़ने को जब भी घर पर कहते थे मेरे भाई

करता था दर्द-ए-सर का अक्सर ही मैं बहाना

मिलती नहीं थी फ़ुर्सत दिन रात खेलने से<

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