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हाँ हुजूर मै चीख रहा हूँ - डॉ. हरिओम पंवार | Stay Home Stay Safe

हाँ हुजूर मै चीख रहा हूँ हाँ हुजूर मै चिल्लाता हूँ

क्योंकि हमेशा मैं भूखी अंतड़ियों कि पीड़ा गाता हूँ

मेरा कोई गीत नहीं है किसी रूपसी के गालों पर

मैंने छंद लिखे हैं केवल नंगे पैरों के छालों पर

मैंने सदा सुनी है सिसकी मौन चांदनी की रातों में

छप्पर को मरते देखा है रिमझिम- रिमझिम बरसातों में

आहों कि अभिव्यक्ति रहा हूँ

कविता में नारे गाता हूँ

मै सच्चे शब्दों का दर्पण

संसद को भी दिखलाता हूँ

क्योंकि हमेशा मैं भूखी अंतड़ियों कि पीड़ा गाता हूँ

अवसादों के अभियानों से वातावरण पड़ा है घायल

वे लिखते हैं गजरे, कजरे, शबनम, सरगम, मेंहदी, पायल

वे अभिसार पढ़ाने बैठे हैं पीड़ा के सन्यासी को

मैं कैसे साहित्य समझ लूँ कुछ शब्दों कि अय्याशी को

मै भाषा में बदतमीज हूँ

अलंकार को ठुकराता हूँ

और गीत के व्यकरानो के

आकर्षण से कतराता हूँ

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