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बटुकेश्वर दत्त - भगत सिंह के सहयोगी, जिन्हें आजाद भारत में न नौकरी मिली न ईलाज

आज सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्यों हम अपने नायकों, लेखकों के जिन्दा होने पर उन्हें उनके हिस्से का सम्मान नहीं दे पाते और अपने हिस्से के दायित्व की इतिश्री सिर्फ़ मरने के बाद दो-चार शब्द कह कर मान लेते हैं!


अब तो आंखों में गम-ए-हस्ती के पर्दे पड़ गए

अब कोई हुस्ने मुजस्सिम बेनक़ाब आया तो क्या


- शकील बंदायूनी


बटुकेश्वर दत्त: एक क्रांतिकारी की दर्दनाक कहानी ! 'गुमनाम नायकों की गौरवशाली गाथाएं' नामक अपनी किताब में विष्णु शर्मा ने दत्त के बारे में विस्तार से लिखा है. उनके मुताबिक दत्त के दोस्त चमनलाल आजाद ने एक लेख में लिखा, 'क्या दत्त जैसे कांतिकारी को भारत में जन्म लेना चाहिए, परमात्मा ने इतने महान शूरवीर को हमारे देश में जन्म देकर भारी भूल की है. खेद की बात है कि जिस व्यक्ति ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए प्राणों की बाजी लगा दी और जो फांसी से बाल-बाल बच गया, वह आज नितांत दयनीय स्थिति में अस्पताल में पड़ा एड़ियां रगड़ रहा है और उसे कोई पूछने वाला नहीं है.'भगत सिंह स्‍वतंत्रता सेनानी बटुकेश्‍वर दत्‍त के प्रशंसक थे. इसका एक सबूत उनकी जेल डायरी में है. उन्‍होंने बटुकेश्‍वर दत्‍त का एक ऑटोग्राफ लिया था. बटुकेश्‍वर और भगत सिंह लाहौर सेंट्रल जेल में कैद थे. बटुकेश्‍वर के लाहौर जेल

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