
आबशारों की याद आती है
फिर किनारों की याद आती है
जो नहीं हैं मगर उन्हीं से हूँ
उन नज़ारों की याद आती है
ज़ख़्म पहले उभर के आते हैं
फिर हज़ारों की याद आती है <
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आबशारों की याद आती है
फिर किनारों की याद आती है
जो नहीं हैं मगर उन्हीं से हूँ
उन नज़ारों की याद आती है
ज़ख़्म पहले उभर के आते हैं
फिर हज़ारों की याद आती है <