
गुरु पर संस्कृत श्लोक हिंदी में part2:
- पूर्णे तटाके तृषितः सदैव
- भूतेऽपि गेहे क्षुधितः स मूढः ।
- कल्पद्रुमे सत्यपि वै दरिद्रः
- गुर्वादियोगेऽपि हि यः प्रमादी ॥
- जो इन्सान गुरु मिलने के बावजुद प्रमादी रहे, वह मूर्ख पानी से भरे हुए सरोवर के पास होते हुए भी प्यासा, घर में अनाज होते हुए भी भूखा, और कल्पवृक्ष के पास रहते हुए भी दरिद्र है ।
- वेषं न विश्वसेत् प्राज्ञः वेषो दोषाय जायते ।
- रावणो भिक्षुरुपेण जहार जनकात्मजाम् ॥
- (केवल बाह्य) वेष पर विश्वास नहि करना चाहिए; वेष दोषयुक्त (झूठा) हो सकता है । रावण ने भिक्षु का रुप लेकर हि सीता का हरण किया था ।
- त्यजेत् धर्मं दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत् ।
- त्यजेत् क्रोधमुखीं भार्यां निःस्नेहान् बान्धवांस्त्यजेत् ॥
- इन्सान ने दयाहीन धर्म का, विद्याहीन गुरु का, क्रोधी पत्नी का, और स्नेहरहित संबंधीयों का त्याग करना चाहिए ।
- नीचं शय्यासनं चास्य सर्वदा गुरुसंनिधौ ।
- गुरोस्तु चक्षु र
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