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धर्म पर संस्कृत श्लोक हिन्दी में

धर्म पर संस्कृत श्लोक हिन्दी में

तर्कविहीनो वैद्यः लक्षण हीनश्च पण्डितो लोके ।
भावविहीनो धर्मो नूनं हस्यन्ते त्रीण्यपि

तर्कविहीन वैद्य, लक्षणविहीन पंडित, और भावरहित धर्म – ये अवश्य हि जगत में हाँसीपात्र बनते हैं ।

अस्थिरं जीवितं लोके ह्यस्थिरे धनयौवने ।
अस्थिराः पुत्रदाराश्च धर्मः कीर्तिर्द्वयं स्थिरम् ॥

इस अस्थिर जीवन/संसार में धन, यौवन, पुत्र-पत्नी इत्यादि सब अस्थिर है । केवल धर्म, और कीर्ति ये दो हि बातें स्थिर है ।

स जीवति गुणा यस्य धर्मो यस्य जीवति

गुणधर्मविहीनो यो निष्फलं तस्य जीवितम् ॥

जो गुणवान है, धार्मिक है वही जीते हैं (या “जीये” कहे जाते हैं) । जो गुण और धर्म से रहित है उसका जीवन निष्फल है ।

प्रामाण्यबुद्धिर्वेदेषु साधनानामनेकता ।

उपास्यानामनियमः एतद् धर्मस्य लक्षणम् ॥

वेदों में प्रामाण्यबुद्धि, साधना के स्वरुप में विविधता, और उपास्यरुप संबंध में नियमन नहीं – ये हि धर्म के लक्षण हैं ।

धर्म पर श्लोक Top slokas

अविज्ञाय नरो धर्मं दुःखमायाति याति च ।

मनुष्य जन्म साफल्यं केवलं धर्मसाधनम् ॥

धर्म को न जानकर मनुष्य दुःखी होता है । धर्म का सेवन करने में हि मनुष्य जन्म का साफल्य है ।

बाल्यादपि चरेत् धर्ममनित्यं

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