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भक्तामर स्तोत्र Sanskrit Shlok With Hindi

सर्वरोगनाशक है भक्तामर स्तोत्र

भक्तामर स्तोत्र के नियमित पढ़ने से कैंसर से मुक्ति मिल सकती है,

भक्तामर स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंगजी ने की थी। इस स्तोत्र का दूसरा नाम आदिनाथ स्तोत्र भी है। यह संस्कृत में लिखा गया है तथा प्रथम शब्द ‘भक्तामर’ होने के कारण ही इस स्तोत्र का नाम ‘भक्तामर स्तोत्र‘ पड़ गया। ये वसंत-तिलका छंद में लिखा गया है। हम लोग ‘भक्ताम्बर’ बोलते हैं जबकि ये ‘भक्तामर’ है।

भक्तामर स्तोत्र में 48 श्लोक हैं। हर श्लोक में मंत्र शक्ति निहित है। इसके 48 के 48 श्लोकों में ‘म’, ‘न’, ‘त’ व ‘र’ ये 4 अक्षर पाए जाते हैं।

इस स्तोत्र की रचना के संदर्भ में प्रमाणित है कि आचार्य मानतुंगजी को जब राजा भोज ने जेल में बंद करवा दिया था, तब उन्होंने भक्तामर स्तोत्र की रचना की तथा 48 श्लोकों पर 48 ताले टूट गए। मानतुंग आचार्य 7वीं शताब्दी में राजा भोज के काल में हुए हैं। इस स्तोत्र में भगवान आदिनाथ की स्तुति की गई है

भक्तामर स्तोत्र का अब तक लगभग 130 बार अनुवाद हो चुका है। बड़े-बड़े धार्मिक गुरु चाहे वो हिन्दू धर्म के हों, वे भी भक्तामर स्तोत्र की शक्ति को मानते हैं तथा मानते हैं कि भक्तामर स्तोत्र जैसा कोई स्तोत्र नहीं। अपने आप में बहुत शक्तिशाली होने के कारण यह स्तोत्र बहुत ज्यादा प्रसिद्ध हुआ। यह स्तोत्र संसार का इकलौता स्तोत्र है जिसका इतनी बार अनुवाद हुआ, जो कि इस स्तोत्र के प्रसिद्ध होने को दर्शाता है। मंत्र थैरेपी में भी इसका उपयोग विदेशों में होता है, इसके भी प्रमाण हैं।

भक्तामर स्तोत्र के पढ़ने का कोई एक निश्चित नियम नहीं है। भक्तामर स्तोत्र को किसी भी समय प्रात:, दोपहर, सायंकाल या रात में कभी भी पढ़ा जा सकता है। इसकी कोई समयसीमा निश्चित नहीं है, क्योंकि ये सिर्फ भक्ति प्रधान स्तोत्र हैं जिसमें भगवान की स्तुति है। धुन तथा समय का प्रभाव अलग-अलग होता है।

भक्तामर स्तोत्र का प्रसिद्ध तथा सर्वसिद्धिदायक महामंत्र है-‘ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं अर्हं श्री वृषभनाथतीर्थंकराय् नम:।’

48 काव्यों के 48 विशेष मंत्र भी हैं।

48 काव्यों की महत्ता

  1. सर्वविघ्न विनाशक काव्य
  2. शत्रु तथा शिरपीड़ानाशक काव्य
  3. सर्वसिद्धिदायक काव्य
  4. जल-जंतु भयमोचक काव्य
  5. नेत्ररोग संहारक काव्य
  6. सरस्वती विद्या प्रसारक काव्य
  7. सर्व संकट निवारक काव्य
  8. सर्वारिष्ट योग निवारक काव्य
  9. भय-पापनाशक काव्य
  10. कुकर विष निवारक काव्य
  11. वांछापूरक काव्य
  12. हस्तीमद निवारक काव्य
  13. चोर भय व एनी भय निवारक काव्य
  14. आधि-व्याधिनाशक काव्य
  15. राजवैभव प्रदायक काव्य
  16. सर्व विजयदायक काव्य
  17. सर्वरोग निरोधक काव्य
  18. शत्रु सैन्य स्तंभक काव्य

19 परविद्या छेदक काव्य

  1. संतान संपत्ति सौभाग्य प्रदायक काव्य
  2. सर्ववशीकरण काव्य
  3. भूत-पिशाच बाधा निरोधक काव्य
  4. प्रेतबाधा निवारक काव्य
  5. शिरो रोगनाशक काव्य
  6. दृष्टिदोष निरोधक काव्य
  7. आधा शीशी एवं प्रसव पीड़ा विनाशक काव्य
  8. शत्रु उन्मूलक काव्य
  9. अशोक वृक्ष प्रतिहार्य काव्य
  10. सिंहासन प्रतिहार्य काव्य
  11. चमर प्रतिहार्य काव्य
  12. छत्र प्रतिहार्य काव्य
  13. देव दुंदुभी प्रतिहार्य काव्य
  14. पुष्पवृष्टि प्रतिहार्य
  15. भामंडल प्रतिहार्य
  16. दिव्य ध्वनि प्रतिहार्य
  17. लक्ष्मी प्रदायक काव्य
  18. दुष्टता प्रतिरोधक काव्य
  19. वैभववर्धक काव्य
  20. सिंह शक्ति संहारक काव्य
  21. सर्वाग्निशामक काव्य
  22. भुजंग भयभंजक काव्य
  23. युद्ध भय विनाशक काव्य
  24. सर्व शांतिदायक काव्य
  25. भयानक जल विपत्ति विनाशक काव्य
  26. सर्व भयानक रोग विनाशक काव्य
  27. बंधन विमोचक काव्य
  28. सर्व भय निवारक काव्य
  29. मनोवांछित सिद्धिदायक काव्य

भक्तामर स्तोत्र का प्रतिदिन आराधन कर धर्मध्यान कर जीवन में सुख-शांति का अनुभव करें।

जय जिनेन्द्र… !

भक्तामर स्तोत्र (संस्कृत)

वसंततिलकावृत्तम्।

सर्व विघ्न उपद्रवनाशक

भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा-

मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम् ।

सम्यक्प्रणम्य जिन-पाद-युगं युगादा-

वालम्बनं भव-जले पततां जनानाम् ॥1॥

शत्रु तथा शिरपीडा नाशक

यःसंस्तुतः सकल-वांग्मय-तत्त्वबोधा-

दुद्भूत-बुद्धि-पटुभिः सुरलोक-नाथै ।

स्तोत्रैर्जगत्त्रितय-चित्त-हरै-रुदारैः,

स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ॥2॥

सर्वसिद्धिदायक

सर्वसिद्धिदायक

बुद्धया विनापि विबुधार्चित-पाद-पीठ,

स्तोतुं समुद्यत-मतिर्विगत-त्रपोहम् ।

बालं विहाय जल-संस्थित-मिन्दु-बिम्ब-

मन्यःक इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ॥3॥

जलजंतु निरोधक

वक्तुं गुणान् गुण-समुद्र! शशांक-कांतान्,

कस्ते क्षमः सुर-गुरु-प्रतिमोपि बुद्धया ।

कल्पांत-काल-पवनोद्धत-नक्र-चक्रं,

को वा तरीतु-मलमम्बु निधिं भुजाभ्याम् ॥4॥

नेत्ररोग निवारक

सोहं तथापि तव भक्ति-वशान्मुनीश,

कर्तुं स्तवं विगत-शक्ति-रपि प्रवृतः ।

प्रीत्यात्म-वीर्य-मविचार्य्य मृगी मृगेन्द्रं,

नाभ्येति किं निज-शिशोः परि-पालनार्थम् ॥5॥

विद्या प्रदायक

अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम,

त्वद्भक्ति-रेव-मुखरी-कुरुते बलान्माम् ।

यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति,

तच्चाम्र-चारु-कालिका-निकरैक-हेतु ॥6॥

सर्व विष व संकट निवारक

त्वत्संस्तवेन भव-संतति-सन्निबद्धं

पापं क्षणात्क्षय-मुपैति शरीर-भाजाम् ।

आक्रांत-लोक-मलिनील-मशेष-माशु,

सूर्यांशु-भिन्न-मिव शार्वर-मन्धकारम्॥7॥

सर्वारिष्ट निवारक

मत्वेति नाथ तव संस्तवनं मयेद-

मारभ्यते तनुधियापि तव प्रभावात् ।

चेतो हरिष्यति सतां नलिनी-दलेषु,

मुक्ताफल-द्युति-मुपैति ननूद-बिन्दुः ॥8॥

सर्वभय निवारक

आस्तां तव स्तवन-मस्त-समस्त-दोषं,

त्वत्संकथापि जगतां दुरितानि हंति ।

दूरे सहस्त्र-किरणः कुरुते प्रभैव,

पद्माकरेषु जलजानि विकास-भांजि ॥9॥

कूकर विष निवारक

नात्यद्भुतं भुवन-भूषण-भूतनाथ,

भूतैर्गुणैर्भुवि भवंत-मभिष्टु-वंतः ।

तुल्या भवंति भवतो ननु तेन किं वा,

भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति ॥10॥

इच्छित-आकर्षक

दृष्ट्वा भवंत-मनिमेष-विलोकनीयं,

नान्यत्र तोष-मुपयाति जनस्य चक्षुः ।

पीत्वा पयः शशिकर-द्युति-दुग्ध-सिन्धो,

क्षारं जलं जलनिधे रसितुँ क इच्छेत् ॥11॥

हस्तिमद-निवारक

यैः शांत-राग-रुचिभिः परमाणु-भिस्त्वं,

निर्मापितस्त्रि-भुवनैक-ललाम-भूत ।

तावंत एव खलु तेप्यणवः पृथिव्यां,

यत्ते समान-मपरं न हि रूपमस्ति ॥12॥

चोर भय व अन्यभय निवारक

वक्त्रं क्व ते सुर-नरोरगनेत्र-हारि,

निःशेष-निर्जित-जगत्त्रित-योपमानम् ।

बिम्बं कलंक-मलिनं क्व निशाकरस्य,

यद्वासरे भवति पाण्डु-पलाश-कल्पम् ॥13॥

आधि-व्याधि-नाशक लक्ष्मी-प्रदायक

सम्पूर्ण-मण्डल-शशांक-कला कलाप-

शुभ्रा गुणास्त्रिभुवनं तव लंग्घयंति ।

ये संश्रितास्त्रिजगदीश्वर-नाथमेकं,

कस्तान्निवारयति संचरतो यथेष्टम ॥14॥

राजसम्मान-सौभाग्यवर्धक

चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशांगनाभि-

नीतं मनागपि मनो न विकार-मार्गम् ।

कल्पांत-काल-मरुता चलिता चलेन

किं मन्दराद्रि-शिखरं चलितं कदाचित् ॥15॥

सर्व-विजय-दायक

निर्धूम-वर्त्ति-रपवर्जित-तैलपूरः,

कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रकटी-करोषि ।

गम्यो न जातु मरुतां

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