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कविशाला संवाद 2023 - राजस्थानी 'भाषा' और साहित्य" |अतुल कनक और अंकुर मिश्रा की बातचीत

कवि व लेखक अतुल कनक कविशाला संवाद का हिस्सा बने. उन्होंने भाषा और उसके संरक्षण पर बात की. साथ ही उन्होंने साहित्य, रचना व प्रकाशन के विषय में भी चर्चा की. इस पॉडकास्ट को कविशाला के फाउंडर अंकुर मिश्रा ने होस्ट किया. पढ़िए इस पॉडकास्ट के कुछ अंश.

क्या किसी भाषा का सरलीकरण उस भाषा के पतन का कारण हो सकता है, सवाल का जवाब देते हुए अतुल कनक ने कहा कि भाषा नदी की तरह होती है, और नदी जब उदगम से चल कर समुद्र तक जाती है तो वो अपने साथ तरह तरह के प्रवाह लेकर चलती है. भाषा में नवनीयता होनी चाहिए लेकिन भाषा में जो ठेठ का ठसका है वो बचा रहना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि हम अंग्रेजी को तो बिलकुल ग्रामेटिकल बोलना चाहते हैं. लेकिन अपनी भाषा गलत बोलने में भी हमें गर्व महसूस होता है. मसलन बहुत लोग गर्व के साथ कहते है कि "हमें हिंदी नहीं आती". ऐसी बातें काफी निराशा जनक है.

अंकुर के अगले सवाल "राजस्थानी भाषा अलग होनी चाहिए ? क्या आप राजस्थानी और हिंदी दोनों को अलग अलग भाषाओं के रूप में देखते हैं" का जवाब देते हुए अतुल कनक ने कहा कि " बिलकुल दोनों अलग अलग भाषाएं हैं, राजस्थानी के बाद के विकास का क्रम है हिंदी. संविधान में जब भाषाओं की मान्यता का प्रावधान किया गया था, तो उसका मूल मंतव्य यही था कि हम हमारी देशित भाषाओं को सहेज कर रख सकें.

चर्चा आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा राजस्थानी भाषा के बाद गुजराती भाषा विकसित हुई. और उसको मान्यता मिल गई. मुझे ये लगता है कि जो लोग सोंचते हैं कि राजस्थानी को मान्यता देने से हिंदी कमजोर हो जाएगी, वो शायद हिंदी के सामर्थ्य को कम कर के आंकना चाहते हैं. सेठ गोविंद नाथ कहते थे "भाषा तो जगन्नाथ का रथ होता है जिसे हर आदमी अपने सामर्थ्य से आगे आगे खींचता है." अतुल कनक आगे कहते हैं कि यदि राजस्थानी हिंदी है तो उसे अनुवाद के माध्यम से पढानी बंद की जानी चाहिए. क्या आप बिना अनुवाद के राजस्थानी समझ सकते हैं ?

अंकुर ने अतुल कनक से सवाल किया कि वे कविता के अलावा क्या करते है?

अतुल कनक ने बताया कि वे एक सामान्य सी स

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