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मौन मुस्कान की मार - एक ऐसी व्यंग रचना जो आपको गुदगुदाने के साथ सोचने पर मजबूर करती है

आशुतोष राणा द्वारा लिखित मौन 'मुस्कान की मार' सिर्फ एक किताब नहीं है, अपितु व्यंग्य की ऐसी अद्भुत धार है जो आज के सन्दर्भ में समाज कि हर सच्चाई से अवगत कराती है! इसमें लिखी हर कथा एवं उसके पात्र हमें अपने इर्द गिर्द ही महसूस होते है, कहानियों में श्रेष्ठ के शब्दों का चयन ठेठ ज़मीन से जुड़ा लगता है एवं ज़ेहन में मिट्टी की सौंधी खुशबू देता है, समाज को जाग्रत करने के इस भगीरथ प्रयास में हम सभी को उनका सहयोग करना चाहिए! जितने अच्छे कलाकार उतने ही अच्छे कलमकार। आशुतोष राणा जी ने इस पुस्तक में कमाल ही किया है। यदि कुछ पढ़ना है तो इसे पढ़ें। ऐसे सटीक व्यंग मिलेंगे वर्तमान पर कि आप सोचते रह जायेंगे कि इतनी साफगोई और ऐसी शिल्प से भी लिखा जा सकता है, मुस्कान की मार एक बहुत ही शानदार व्यंग्य रचना है उसमें निहित चरित्रो को आप अपने आसपास पाएंगे लेखक की सूक्ष्म निरीक्षण दृष्टि पात्रों का चयन आपको हंसने गुदगुदाने के साथ सोचने पर भी मजबूर करता है .. पात्रों का भोलापन उनकी चालाकी उनकी लाचारी बेचारी सारे भाव लेखक ने जिस तरह से लिखे हैं सिद्ध करते हैं कि लेखक मानव मन को पढ़ने की अद्भुत क्षमता रखते है!


जब परिचय की बात आती है तो हम ‘तथ्यों’ पर बल देते हैं। सहजता से बता ले जाते हैं कि, जन्म कहाँ हुआ। कब हुआ। माता-पिता कौन हैं; लेकिन क्या ये तथ्य ही हमारा परिचय है? मेरा मानना है कि जितना अधिक प्रभाव तथ्य का होता है, उतना अधिक प्रभाव सत्य का भी होता है और मेरे विचार से इसी सत्य को जानने के लिए हम संसार में जन्म लेते हैं। तथ्यों की जब हम बात करते हैं तो यह ठीक है कि मैं 10 नवंबर को पैदा हुआ, मध्य प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में जिसका नाम गाडरवारा है। पिता का नाम श्री रामनारायणजी और माता का नाम श्रीमती सीता देवीजी है। मैंने प्रारंभिक व उच्च शिक्षा विभिन्न स्थानों—गाडरवारा, अहमदाबाद, जबलपुर व सागर विश्वविद्यालय में ग्रहण की और फिर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा दिल्ली से स्नातक (ड्रामेटिक्स) होने के बाद जीविकोपार्जन के लिए मैं मुंबई आ गया। कई सारी फिल्में की, कई सारे पुरस्कार मिल गए। सत्कार भी हो गया, लेकिन क्या यही मेरा परिचय है? वास्तव में हम संसार से परिचय ही इसलिए करते हैं, क्योंकि हम स्वयं से परिचय प्राप्त करना चाहते हैं। स्वयं से परिचय प्राप्त करने की प्रक्रिया में हम संसार से परिचित होते चले जाते हैं। लेकिन स्वयं को जानना सृष्टि की जटिलतम रहस्यमयी प्रक्रिया है। इस रहस्य का अनावरण समर्थ सद्गुरु ही कर पाते हैं। मेरा सौभाग्य है कि मैं अपने सद्गुरु परमपूज्य दद्दाजी की शरण में हूँ। स्व से साक्षात्कार का प

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