
[Kavishala Labs] हिंदी साहित्य के निर्माण में महिला साहित्यकारों का उल्लेखनीय योगदान रहा है. कई महान कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं से हिंदी काव्य को समृद्ध किया. एवं पाठकों के ह्रदय में गहरी छाप भी छोड़ी. आइये मिलते हैं हिंदी की कुछ श्रेष्ठ कवयित्रियाँ से-
(१)मीराबाई (१४९८ -१५७३) सोलहवीं शताब्दी की एक कृष्ण भक्त और कवयित्री थीं. उनकी कविता कृष्ण भक्ति के रंग में रंग कर और गहरी हो जाती है। मीरा बाई ने कृष्ण भक्ति के स्फुट पदों की रचना की है. पढ़िए उनकी कविता,-
पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे।
मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी रे।
लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे॥
विष का प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हाँसी रे।
'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनासी रे॥
(२) महादेवी वर्मा (२६ मार्च १९०७ — ११ सितंबर १९८७) हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों[क] में से एक मानी जाती हैं। आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। पढ़िए उनकी कविता,-
मैं नीर भरी दुख की बदली !
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रंदन में आहत विश्व हँसा,
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झरिणी मचली !
मेरा पग-पग संगीत भरा,
श्वासों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली !
मैं क्षितिज भृकुटि पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन अंकुर बन निकली !
पथ को न मलिन करता आना,
पद चिह्न न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में,
सुख की सिहरन बन अंत खिली !
विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली !
(३) सुभद्रा कुमारी चौहान (१६ अगस्त १९०४-१५ फरवरी १९४८) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। उनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए पर उनकी प्रसिद्धि झाँसी की रानी (कविता) के कारण है। ये राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं, किन्तु इन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के पश्चात अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया। वातावरण चित्रण-प्रधान शैली की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है, इस कारण इनकी रचना की सादगी हृदयग्राही है। पढ़िए उनकी कविता,-
इस समाधि में छिपी हुई है, एक राख की ढेरी ।
जल कर जिसने स्वतंत्रता की, दिव्य आरती फेरी ।
यह समाधि यह लघु समाधि है, झाँसी की रानी की ।
अंतिम लीलास्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की ।
यहीं कहीं पर बिखर गई वह, भग्न-विजय-माला-सी ।
उसके फूल यहाँ संचित हैं, है यह स्मृति शाला-सी ।
सहे वार पर वार अंत तक, लड़ी वीर बाला-सी ।
आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर, चमक उठी ज्वाला-सी ।
बढ़ जाता है मान वीर का, रण में बलि होने से ।
मूल्यवती होती सोने की भस्म, यथा सोने से ।
रानी से भी अधिक हमे अब, यह समाधि है प्यारी ।
यहाँ निहित है स्वतंत्रता की, आशा की चिनगारी ।
इससे भी सुन्दर समाधियाँ, हम जग में हैं पाते ।
उनकी गाथा पर निशीथ में, क्षुद्र जंतु ही गाते ।
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