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वो शायर जिसे मिर्ज़ा ग़ालिब भी उस्ताद मानते थें

[Kavishala Labs] वैसे तो जब भी शेर-ओ-शायरी का ज़िक्र होता है तो लोगो की ज़ुबान में सबसे पहले मिर्ज़ा ग़ालिब का ही नाम आता है. लेकिन उर्दू अदब में एक ऐसे भी शायर हुए हैं जिनको ग़ालिब भी अपना उस्ताद मानते थे. वो शायर थे मीर तक़ी मीर, मिर्ज़ा ग़ालिब हमेशा मीर की तारीफ करते थे, ग़ालिब ने मीर की तारीफ में ये शेर कहा था- 

"रेख़्ता के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ग़ालिब,

कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था" 

ग़ालिब का मानना था की जो गहराई, दर्द ,शिद्दत और लरजिश मीर की शायरी में थी वो कही और देखने को नहीं मिलती है. मीर की इबारत की कशिश किसी को भी अपना दीवाना बना लेती है. चाहे इश्क़ हो, जुदाई हो , वस्ल हो या महबूब की तारीफ करना या फिर महबूब को उलाहना देना. मीर ने वक़्त की जज़ाक़त को देखते हुए हर तरह के शेर कहें है.

मीर तकी मीर (1723 - 20 सितम्बर 1810) उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के अज़ीम शायर थे. उनका जन्म आगरा मे हुआ था. उनका बचपन पिता की देखरेख करने मे बीता. मीर को उर्दू के उस प्रचलन के लिए याद किये जाते है जिसमें फ़ारसी और हिन्दुस्तानी के शब्दों का मेल और सामंजस्य हो.

मीर को उर्दू में शेर कहने की दिलचस्पी अमरोहा के सैयद सआदत अली की वजह से हुई थी. २५-२६ साल की उम्र तक मीर दीवाने शायर के रूप में मशहूर हो गए थे. मीर की ग़ज़लों के कुल ६ दीवान हैं. इनमें से कई शेर ऐसे हैं जो मीर के हैं या नहीं इस पर विवाद है. इसके अलावा कई शेर या कसीदे ऐसे हैं जो किसी और के संकलन में हैं पर ऐसा मानने वालों की कमी नहीं कि वे मीर के हैं. शेरों (अरबी में अशआर) की संख्या कुल १५००० है. इसके अलावा कुल्लियात-ए-मीर में दर्जनों मसनवियाँ (स्तुतिगान), क़सीदे, वासोख़्त और मर्सिये की धरोहर है. 

मीर तक़ी मीर की नज्मो को फ़िल्मी गीतों में भी इस्तेमाल किया गया है. मीर का दर्द और अंदाज-ए-बयां कुछ ऐसा था जब उनकी नज्मे फ़िल्मी गानों के रूप में लोगो के बीच आयीं तो मीर

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