
हिंदी साहित्य में बाल साहित्य की उपलब्धता समृद्ध रूप से रही है. हिंदी बाल साहित्य की परम्परा प्राचीन है. बाल साहित्य के अन्तर्गत वह समस्त साहित्य आता है जिसे बच्चों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर लिखा गया हो. बाल साहित्य में रोचक कहानियाँ एवं कविताएँ प्रमुख हैं. ये कविताएं और कहानियां बच्चों के मन में जिज्ञासा पैदा कर उनके मानसिक विकास में सहयोग करती है. प्रस्तुत हैं कुछ श्रेष्ठ साहित्यकारों की उत्कृष्ट बाल साहित्य की रचनाएं-
(१) हिन्दी साहित्य में श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक और ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि महात्मा सूरदास हिंदी साहित्य के सूर्य माने जाते हैं. सूरदास ने वात्सल्य, श्रृंगार और शांत रसों को मुख्य रूप से अपनाया है. सूर ने अपनी कल्पना और प्रतिभा के सहारे कृष्ण के बाल्य-रूप का अति सुंदर, सरस, सजीव और मनोवैज्ञानिक वर्णन किया है. बालकों की चपलता, स्पर्धा, अभिलाषा, आकांक्षा का वर्णन करने में विश्व व्यापी बाल-स्वरूप का चित्रण किया है. प्रस्तुत हैं कृष्ण पर समर्पित उनकी बाल कविता -
मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं
मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं।
जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं॥
सुरभी कौ पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं।
ह्वै हौं पूत नंद बाबा को , तेरौ सुत न कहैहौं॥
आगैं आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहि न जनैहौं।
हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुलहिया दैहौं
तेरी सौ, मेरी सुनि मैया, अबहिं बियाहन जैहौं॥
सूरदास ह्वै कुटिल बराती, गीत सुमंगल गैहौं॥
(२) रामधारी सिंह 'दिनकर (23 सितम्बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे. वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं. उन्होंने बाल कविताएं भी लिखीं हैं प्रस्तुत हैं उनकी प्रसिद्ध बाल कविता-
चाँद का कुर्ता
हठ कर बैठा चान्द एक दिन, माता से यह बोला,
सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला ।
सन-सन चलती हवा रात भर जाड़े से मरता हूँ,
ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ ।
आसमान का सफ़र और यह मौसम है जाड़े का,
न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही कोई भाड़े का ।
बच्चे की सुन बात, कहा माता ने 'अरे सलोने`,
कुशल करे भगवान, लगे मत तुझको जादू टोने ।
जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ,
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ ।
कभी एक अँगुल भर चौड़ा, कभी एक फ़ुट मोटा,
बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा ।
घटता-बढ़ता रोज़, किसी दिन ऐसा भी करता है
नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है
अब तू ही ये बता, नाप तेरी किस रोज़ लिवाएँ
सी दे एक झिंगोला जो हर रोज़ बदन में आए !
(चान्द का जवाब)
हंसकर बोला चान्द, अरे माता, तू इतनी भोली ।
दुनिया वालों के समान क्या तेरी मति भी डोली ?
घटता-बढ़ता कभी नहीं मैं वैसा ही रहता हूँ ।
केवल भ्रमवश दुनिया को घटता-बढ़ता लगता हूंँ ।
आधा हिस्सा सदा उजाला, आधा रहता काला ।
इस रहस्य को समझ न पाता भ्रमवश दुनिया वाला ।
अपना उजला भाग धरा को क्रमशः दिखलाता हूँ ।
एक्कम दूज तीज से बढ़ता पूनम तक जाता हूँ ।
फिर पूनम के बाद प्रकाशित हिस्सा घटता जाता ।
पन्द्रहवाँ दिन आते-आते पूर्ण लुप्त हो जाता ।
दिखलाई मैं भले पड़ूँ ना यात्रा हरदम जारी ।
पूनम हो या रात अमावस चलना ही लाचारी ।
चलता रहता आसमान में नहीं दूसरा घर है ।
फ़िक्र नहीं जादू-टोने की सर्दी का, बस, डर है ।
दे दे पूनम की ही साइज का कुर्ता सिलवा कर ।
आएगा हर रोज़ बदन में इसकी मत चिन्ता कर।
अब तो सर्दी से भी ज़्यादा एक समस्या भारी ।
जिसने मेरी इतने दिन की इज़्ज़त सभी उतारी ।
कभी अपोलो मुझको रौंदा लूना कभी सताता ।
मेरी कँचन-सी काया को मिट्टी का बतलाता ।
मेरी कोमल काया को कहते राकेट वाले
कुछ ऊबड़-खाबड़ ज़मीन है, कुछ पहाड़, कुछ नाले ।
चन्द्रमुखी सुन कौन करेगी गौरव निज सुषमा पर ?
खुश होगी कैसे नारी ऐसी भद्दी उपमा पर ।
कौन पसन्द करेगा ऐसे गड्ढों और नालों को ?
किसकी नज़र लगेगी अब चन्दा से मुख वालों को ?
चन्द्रयान भेजा अमरीका ने भेद और कुछ हरने ।
रही सही जो पोल बची थी उसे उजागर करने ।
एक सुहाना भ्रम दुनिया का क्या अब मिट जाएगा ?
नन्हा-मुन्ना क्या चन्दा की लोरी सुन पाएगा ?
अब तो तू ही बतला दे माँ कैसे लाज बचा