
इंटरनेशनल पीस डे ("शांति दिवस") हर वर्ष 21 सितंबर को दुनिया भर में मनाया जाता है। इसकी शुरुआत संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1981 में की गई थी. पीस डे ("शांति दिवस") का उद्देश्य लोगो को आपसी मतभेद भुला कर शांति और भाईचारे की राह पर चलने के लिए प्रेरित करना है. शांति दिवस मानवता को सभी मतभेदों से ऊपर उठकर शांति के लिए संकल्पित होने और विश्व भर में शांति और भाईचारे की संस्कृति के निर्माण में योगदान देने की अपील करता है. एक स्वस्थ और समृद्ध समाज के लिए शांति अति आवश्यक है. अतः इसके लिए हम सब को संयुक्त प्रयास करने की आवश्यकता है. आज इंटरनेशनल पीस डे (शांति दिवस) पर कविशाला कुछ कवियों की रचनाएं एवं संस्कृत के श्लोक साझा कर कर रहा. जिनमे शांति और भाईचारे की बात की गई है. इन रचनाओं को पढ़िए और आज शांति दिवस के दिन समाज में भाईचारा और सौहार्द लाने के लिए प्रतिज्ञा लीजिये.
शांति स्वास्थ्य और सौहार्द पर श्लोक :
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः (वृहदारण्यक उपनिषद् )
अर्थ - सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े। ॐ शांति शांति शांति॥
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ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षं शान्ति:
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:
सर्वं शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥ (यजुर्वेद)
इस शांति पाठ मंत्र में सृष्टि के समस्त तत्वों व कारकों से शांति बनाये रखने की प्रार्थना की गई है। इसमें यह गया है कि दोनों लोकों में शांति हो, अंतरिक्ष में शांति हो, पृथ्वी पर शांति हों, जल में शांति हो, औषध में शांति हो, वनस्पतियों में शांति हो, विश्व में शांति हो, सभी देवतागणों में शांति हो, ब्रह्म में शांति हो, सब में शांति हो, चारों ओर शांति हो, शांति हो, शांति हो, शांति हो।
इस श्लोक के द्वारा जगत के समस्त जीवों, वनस्पतियों और प्रकृति में शांति बनी रहे इसकी प्रार्थना की गई है, हिंदू संप्रदाय के लोग अपने किसी भी प्रकार के धार्मिक कृत्य, संस्कार, यज्ञ आदि के आरंभ और अंत में इस शांति पाठ के मंत्र का मंत्रोच्चारण करते हैं।
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अम्न (शांति) पर कुछ चुनिंदा शेर
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों
बशीर बद्र
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अगर तुम्हारी अना ही का है सवाल तो फिर
चलो मैं हाथ बढ़ाता हूँ दोस्ती के लिए
अहमद फ़राज़
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उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें
मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे
जिगर मुरादाबादी
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फ़ज़ा ये अम्न-ओ-अमाँ की सदा रखें क़ाएम
सुनो ये फ़र्ज़ तुम्हारा भी है हमारा भी
नुसरत मेहदी
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सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें
आज इंसाँ को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत
बशीर बद्र
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