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वीभत्स रस : घृणा की अभिव्यक्ति के भाव को व्यक्त करने वाला रस

वीभत्स रस की परिभाषा — किसी वस्तु अथवा जीव को देखकर जहां घृणा का भाव उत्पन्न हो वहां वीभत्स रस होता है। वीभत्स घृणा के भाव को प्रकट करने वाला रस है।

यह भाव आलंबन , उद्दीपन तथा संचारी भाव के सहयोग से आस्वाद का रूप धारण कर लेती है, तब यह वीभत्स रस में परिणत होती है। इस रस को लेकर आचार्यों में भी मतभेद है , कुछ आचार्य इस रस को मानसिक मानते हैं तो कुछ इसे तामसिक बताते हैं। अर्थात एक पक्ष व्यक्ति से व्यक्ति , तथा सामाजिक बुराई को घृणा के अंतर्गत रखते हैं , तो दूसरा मांस और रक्तपात आदि को इसकी श्रेणी में रखते हैं।

निम्न लिखित कुछ कविताएं वीभत्स रस के उदाहरण है :-

(i) "जलियाँवाला बाग में बसंत"

यहाँ कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते, 

काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते। 

कलियाँ भी अधखिली, मिली हैं कंटक-कुल से, 

वे पौधे, व पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे। 

परिमल-हीन पराग दाग सा बना पड़ा है, 

हा! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है। 

ओ, प्रिय ऋतुराज! किन्तु धीरे से आना, 

यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना। 

वायु चले, पर मंद चाल से उसे चलाना, 

दुःख की आहें संग उड़ा कर मत ले जाना। 

कोकिल गावें, किन्तु राग रोने का गावें, 

भ्रमर करें गुंजार कष्ट की कथा सुनावें। 

लाना संग में पुष्प, न हों वे अधिक सजीले, 

तो सुगंध भी मंद, ओस से कुछ कुछ गीले। 

किन्तु न तुम उपहार भाव आ कर दिखलाना, 

स्मृति में पूजा हेतु यहाँ थोड़े बिखराना। 

कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा कर, 

कलियाँ उनके लिये गिराना थोड़ी ला कर। 

आशाओं से भरे हृदय भी छिन्न हुए हैं, 

अपने प्रिय परिवार देश से भिन्न हुए हैं। 

कुछ कलियाँ अधखिली यहाँ इसलिए चढ़ाना, 

कर के उनकी याद अश्रु के ओस बहाना। 

तड़प तड़प कर वृद्ध मरे हैं गोली खा कर, 

शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जा कर। 

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