
हिंदी साहित्य में काल के अंतराल व समय परिस्थिति के साथ कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए है. इन परिवर्तनो से सबसे ज्यादा हिंदी कविता प्रभावित हुई है. समय के साथ साथ कई कवियों ने कविता पर नव प्रयोग किये. फलस्वरूप "प्रयोगवादी कविता" का उद्भव हुआ. "प्रयोगवादी कविता" के साथ ही "नई कविता" ने जन्म लिया. "नई कविता" ने हिंदी काव्य साहित्य को न केवल नई चेतना दी बल्कि इसमें ("नई कविता" में) परंपरागत कविता से आगे नये भावबोधों की अभिव्यक्ति के साथ ही नये मूल्यों और नये शिल्प-विधान का अन्वेषण किया गया.
उद्भव- नयी कविता आंदोलन का आरंभ इलाहाबाद की साहित्यिक संस्था परिमल के कवि लेखकों- जगदीश गुप्त, रामस्वरुप चतुर्वेदी और विजयदेव नारायण साही के संपादन में 1954 में प्रकाशित नयी कविता (पत्रिका) से माना जाता है. इससे पहले अज्ञेय के संपादन में प्रकाशित काव्य-संग्रह 'दूसरा सप्तक' की भूमिका तथा उसमें शामिल कुछ कवियों के वक्तव्यों में अपनी कविताओं के लिये 'नयी कविता' शब्द को स्वीकार किया गया था.
नई कविता का कथ्य - नयी कविता के लिए जगत्-जीवन से संबंधित कोई भी स्थिति, सम्बंध, भाव या विचार कथ्य के रूप में त्याज्य नहीं है. जन्म से लेकर मरण तक आज के मानव-जीवन का जिन स्थितियों, परिस्थितियों, सम्बंधों, भावों, विचारों और कार्यों से साहचर्य होता है, उन्हें नयी कविता ने अभिव्यक्त किया है. नए कवि ने किसी भी कथ्य को त्याज्य नहीं समझा है. "नई कविता" की यह विशेषता "जगदीश गुप्त" की "अन्तराल का मौन" में स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है-
कवि की वाणी
कभी मौन नहीं रहती
भीतर-ही-भीतर शब्दमय
सृजन करती है
भले ही वह सुनाई न दे
लौकिक कानों में
वह अलौकिक स्वर ।
रचनाएँ उसी की छायाएँ हैं
रंग-रेखाएँ उसी की ज्योति से
निरन्तर उपजी हैं
फिर भी मनुष्य अपने को
निरीह समझता है ।
भरे-पूरे संसार में
अकारण दुःखी रहता है
खो जाता है जहाँ भी सन्तुलन
पैर डगमगाने लगते हैं
पँख होते हुए भी
उड़ नहीं पाता ।
कथ्य के प्रति नयी कविता में निज अनुभूति प्रमुख है. नया कवि अपने कथ्य को उसी रूप में प्रस्तुत करना चाहता है, जिस रूप में उसे वह अनुभूत करता है.
परंपरा व वादमुक्त है "नई कविता" -नई कविता "परंपरा" को न मानते हुए भाव को प्रधानता देती है. यह पूर्व काव्य के नियमो के बंधन से मुक्त है . परंपरा के साथ ही "नयी कविता" वाद-मुक्ति की कविता है. इससे पहले के कवि भी प्रायः किसी न किसी वाद का सहारा अवश्य लेते थे. और यदि कवि वाद की परवाह न करें, किन्तु आलोचक तो उसकी रचना में काव्य से पहले वाद खोजता था-वाद से काव्य की परख होती थी. किन्तु नयी कविता की स्थिति भिन्न है. नया कवि किसी भी सिद्धांत, मतवाद, संप्रदाय या दृष्टि के आग्रह की कट्टरता में फँसने को तैयार नहीं. संक्षेप में, नयी कविता कोई वाद नहीं है, जो अपने कथ्य और दृष्टि में सीमित हो. कथ्य की व्यापकता और सृष्टि की उन्मुक्तता नई कविता की सबसे बड़ी विशेषता है. "कुंवर नारायण" की कविता "एक हरा जंगल" में "नई कविता" का यह तथ्य देखने को मिलता है.
एक हरा जंगल धमनियों में जलता है।<