
वर्तमान शिक्षा-पद्धति रास्ते में पड़ी हुई कुतिया है, जिसे कोई भी लात मार सकता है | श्रीलाल शुक्ल
[Kavishala Labs] सामाजिक विसंगतियों पर कई साहित्यकारों ने रचनाएं रची, लेकिन श्रीलाल शुक्ल जैसी स्पस्टता और बेबाकी अन्य किसी साहित्यकार की रचनाओं में देखने को नहीं मिलती है.
श्रीलाल शुक्ल (जन्म-31 दिसम्बर 1925 - निधन- 28 अक्टूबर 2011) हिंदी के विख्यात साहित्यकार थे. वे समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिये विख्यात साहित्यकार माने जाते थे. उन्होंने पूर्णरूप से साहित्य लेखन 1954 से आरम्भ किया. धीरे धीरे उनकी कृतियों से हिंदी गद्य के एक गौरवशाली अध्याय की रचना होने लगी.
श्रीलाल शुक्ल की भाषा शैली अद्भुत है, वे मिथकीय शिल्प और देशज मुहावरों से रचनाओं को गढ़ते हैं. त्रासदियों और विडंबनाओं के इसी समानता ने उनकी रचना ‘राग दरबारी’ को महान कृति बनाया, तो इस कृति ने श्रीलाल शुक्ल को महान लेखक के रूप में स्थापित किया .
श्रीलाल शुक्ल की रचनाओं की विषयवस्तु गाँव के जीवन से संबंध रखती है. ग्रामीण जीवन के व्यापक अनुभव और निरंतर परिवर्तित होते परिदृश्य को उन्होंने बहुत गहराई से विश्लेषित किया है. यह भी कहा जा सकता है कि श्रीलाल शुक्ल ने जड़ों तक जाकर व्यापक रूप से समाज की छान बीन कर, उसकी नब्ज को पकड़ा है. इसीलिए यह ग्रामीण संसार उनके साहित्य में देखने को मिला है. श्रीलाल शुक्ल ने साहित्य और जीवन के प्रति अपनी एक सहज धारणा का उल्लेख करते हुए कहा है कि,-"कथालेखन में मैं जीवन के कुछ मूलभूत नैतिक मूल्यों से प्रतिबद्ध होते हुए भी यथार्थ के प्रति बहुत आकृष्ट हूँ. पर यथार्थ की यह धारणा इकहरी नहीं है, वह बहुस्तरीय है और उसके सभी स्तर - आध्यात्मिक, आभ्यंतरिक, भौतिक आदि जटिल रूप से अंतर्गुम्फित हैं. उनकी समग्र रूप में पहचान और अनुभूति कहीं-कहीं रचना को जटिल भले ही बनाए, पर उस समग्रता की पकड़ ही रचना को श्रेष्ठता देती है. जैसे मनुष्य एक साथ कई स्तरों पर जीता है, वैंसे ही इस समग्रता की पहचान रचना को भी बहुस्तरीयता देती है"
शिक्षा व्यवस्था पर उन्होंने तीक्ष्ण कटाक्ष किये हैं. देश के अनेक सकारी स्कूलों दयनीय स्थिति. निम्न स्तर की अध्यापन शैली व सुविधाओं आधी पर व्यंग्य करते हुए श्रीलाल शुक्ल कहते हैं कि, -
"यही हाल ‘राग दरबारी’ के छंगामल विद्यालय इंटरमीडियेट कॉलेज का भी है, जहाँ से इंटरमीडियेट पास करने वाले लड़के सिर्फ इमारत के आधार पर कह सकते हैं, सैनिटरी फिटिंग किस चिड़िया का नाम है. हमने विलायती तालीम तक देशी परंपरा में पाई है और इसीलिए हमें देखो, हम आज भी उतने ही प्राकृत हैं, हमारे इतना पढ़ लेने पर भी हमारा पेशाब पेड़ के तने पर ही उतरता है."
श्रीलाल शुक्ल स्पस्टवादी रहे हैं. उन्होंने सामाजिक विसंगतियों का यथास्थिति वर्णन किया है. उन्होंने चिकनी चुपड़ी बाते नहीं की बल्कि समाज की कड़वा सच्चाई हूबहू वैसा ही वर्णित किया जैसी वे हैं. अपने साहित्य के माध्यम से समसामयिक स्थितियों पर करारी चोट करते हुए वे कहते हैं,-
‘आज मानव समाज अपने पतन के लिए खुद जिम्मेदार है। आज वह खुलकर हँस नहीं सकता। हँसने के लिए भी ‘लाफिंग क्लब’ का सहारा लेना पड़ता है। शुद्ध हवा के लिए ऑक्सीजन पार्लर जाना पड़ता है। बंद बोतल का