
शांत रस : मन की संतुष्टि की अभिव्यक्ति के भाव को व्यक्त करने वाला रस
शांत रस की परिभाषा — ज्ञान की प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने के पश्चात जब मनुष्य को न सुख-दुःख और न किसी से द्वेष-राग होता है, तो ऐसी मनोस्थिति में मन में उठा विभाव शांत रस कहलाता है।
निम्न लिखित कुछ कविताएं वीर रस के उधारण है :-
(i) "दुपहरिया"
झरने लगे नीम के पत्ते बढ़ने लगी उदासी मन की,
उड़ने लगी बुझे खेतों से
झुर-झुर सरसों की रंगीनी,
धूसर धूप हुई मन पर ज्यों-
सुधियों की चादर अनबीनी,
दिन के इस सुनसान पहर में रुक-सी गई प्रगति जीवन की ।
साँस रोक कर खड़े हो गए
लुटे-लुटे-से शीशम उन्मन,
चिलबिल की नंगी बाँहों में
भरने लगा एक खोयापन,
बड़ी हो गई कटु कानों को 'चुर-मुर' ध्वनि बाँसों के वन की ।
थक कर ठहर गई दुपहरिया,
रुक कर सहम गई चौबाई,
आँखों के इस वीराने में-
और चमकने लगी रुखाई,
प्रान, आ गए दर्दीले दिन, बीत गईं रातें ठिठुरन की।
— केदारनाथ सिंह
व्याख्या : मौसम बदल रहा है।सुबह में ठंड की बस खुनक भर बची है। दिन में गर्मी बढ़ने लगी है।नीम के पत्ते झर रहे हैं।यह मौसम उदास करता है। लेकिन उम्मीद के नए पत्ते भी निकल रहे हैं।आम की नई चिकनी कोंपलें गहरे कत्थई रंग में फूल सी दिखती हैं। उदास मौसम में उम्मीद की कोंपलें नए रंग भर रही हैं।
(ii) "धर्म"
तेज़ी से एक दर्द
मन