'साक्षात रसमूर्ति' थे कविवर घनानंद's image
485K

'साक्षात रसमूर्ति' थे कविवर घनानंद

[Kavishala Labs]हिंदी साहित्य का विकास कई चरणों में हुआ है. इन चरणों को "काल" के अनुसार विभक्त किया गया है. हिंदी काव्य साहित्य के सार्थक सृजन में रीतिकाल के कवियों का उल्लेखनीय योगदान रहा है. रीतिकाल (1658-1857 ई.) हिन्दी साहित्य का उत्तर मध्यकाल कहलाता है. रीतिकाल की कविता की प्रमुख धारा का विकास कविता की रीति के आधार पर हुआ. यह काल समृद्धि और विलासिता का काल मन जाता है. सजाव-श्रृंगार की एक अदम्य लिप्सा इस युग के साहित्य में देखने को मिलती है. रीति-काव्य के विकास में तत्कालीन राजनीतिक तथा सामाजिक परिस्थितियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है. रीतिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं घनानंद. घनानंद अपने विलक्षण काव्य प्रतिभा के लिए जाने जाते हैं .

घनानंद (१६७३- १७६०) रीतिकाल की तीन प्रमुख काव्यधाराओं- रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त के अंतिम काव्यधारा के अग्रणी कवि है. आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार रीतिमुक्त घनानन्द का समय सं. १७४६ तक है. अधिकांश विद्वानों का मत है की घनानन्द का जन्म दिल्ली या उसके आस-पास के किसी क्षेत्र में हुआ था.

घनानन्द की काव्यगत विशेषताएं : हिंदी के मध्यकालीन स्वच्छंद प्रवाह के प्रमुख साहित्यकारों में सर्वाधिक साहित्यश्रुत घनानन्द ही प्रतीत होते है. उनकी रचना के दो प्रकार हैं : एक में प्रेमसंवेदना की अभिव्यक्ति है, तो दूसरे में भक्तिसंवेदना की. उनकी रचना अभिधा के वाच्य रूप में कम, लक्षणा के लक्ष्य और व्यंजना के व्यंग्य रूप में अधिक है.  

घनानन्द की रचनाओं में प्रेम का अत्यंत गंभीर, निर्मल, आवेगमय और व्यग्र कर देने वाला उदात्त रूप देखने को मिलता है. अतएव घनानंद को 'साक्षात रसमूर्ति' कहा गया है. घनानंद के काव्य में भाव की जैसी गहराई है, वैसी ही कला की सूक्षम्ता भी. उनकी कविता में लाक्षणिकता, वक्रोक्ति, वाग्विदग्धता के साथ अलंकारों का अद्भुत प्रयोग दृष्टिगोचर होता है. उनकी काव्य-कला में सहजता के साथ वचन-वक्रता का विलक्षण मेल है. भाषा की व्यंजकता बढ़ाने में वे अत्यंत कुशल थे। वस्तुतः वे ब्रजभाषा प्रवीण ही नहीं सर्जनात्मक काव्यभाषा के प्रणेता भी थे

घनानंद द्वारा रचित काव्य कृतियां : विद्वानों के अनुसार घनानंद द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या ४१ है जिनमे सुजानहित, कृपाकंदनिबंध, वियोगबेलि, इश्कलता, यमुनायश, प्रीतिपावस, प्रेमपत्रिका, प्रेमसरोवर, व्रजविलास, रसवसंत, अनुभवचंद्रिका, रंगबधाई, प्रेमपद्धति, वृषभानुपुर सुषमा, गोकुलगीत, नाममाधुरी, गिरिपूजन, विचारसार, दानघटा, भावनाप्रकाश, कृष्णकौमुदी, घामचमत्कार, प्रियाप्रसाद, वृंदावनमुद्रा, व्रजस्वरूप, गोकुलचरित्र, प्रेमपहेली, रसनायश, गोकुलविनोद, मुरलिकामोद, मनोरथमंजरी, व्रजव्यवहार, गिरिगाथा, व्रजवर्णन, छंदाष्टक, त्रिभंगी छंद, कबित्तसंग्रह, स्फुट पदावली और परमहंसवंशावली सम्मिलित हैं. इनके समसाम

Read More! Earn More! Learn More!