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साहित्य के भागीरथ थे कवि "निराला"

आधुनिक हिंदी के अतिविशिष्ट और दिल से निराले कवि "सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का जन्म 21 फरवरी 1896 को बंगाल के मिदनापुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनकी कविताओं में ह्रदय को जलज कर देने वाली सवेंदना है. निराला ने अपने जीवन में न सिर्फ, दुःख, अभाव व अकेलापन देखा बल्कि उन्होंने वेदना में ही अपना जीवन बिताया . बचपन में मां का देहांत हो गया, जवानी में पिता न रहे। उनकी पत्नी प्लेग से काल के गाल में समा गयीं. बेटी का विवाह नहीं हो सका और अकालमृत्यु हुई.

अपने जीवन इतने उतार चढ़ाव देखने वाले कवि निराला ने जीवन में कभी भी हार नहीं मानी. वो अपनी वेदना को कविता में ढालते रहे. जीवन का विष पीते रहे और कविता की अमृत वर्षा करते रहे. धर्मवीर भारती ने स्मरण-लेख में "निराला की तुलना पृथ्वी पर गंगा उतार कर लाने वाले भगीरथ से की थी. धर्मवीर भारती ने लिखा है-‘भगीरथ अपने पूर्वजों के लिए गंगा लेकर आए थे. निराला अपनी उत्तर-पीढ़ी के लिए.’ निराला को याद करते हुए भगीरथ की याद आए या ग्रीक मिथकीय देवता प्रमेथियस/प्रमथ्यु की, तो यह आश्चर्य की बात नहीं है.

निराला ने हिंदी साहित्य में नयी चेतना जागते हुए हिंदी कविता में ज्वाला जलाई , जो सदैव समाज व नए कवियों का मार्ग प्रसस्त करती रहेगी. प्रस्तुत हैं निराले कवि सूर्यकांत निराला की कुछ हृदयी स्पर्शी-कालजयी रचनाएँ -


(१) सत्य 

सत्य, बन्धु सत्य; वहाँ

नहीं अर्र-बर्र;

नहीं वहाँ भेक, वहाँ

नहीं टर्र-टर्र।

एक यहीं आठ पहर

बही पवन हहर-हहर,

तपा तपन, ठहर-ठहर

सजल कण उड़े;

गये सूख भरे ताल,

हुए रूख हरे शाल,

हाय रे, मयूर-व्याल

पूँछ से जुड़े !


(२) मौन

बै

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