अरुणा रॉय (जन्म- 26 मई, 1946, चेन्नई) भारत की उन महिलाओं में से एक हैं, जो बेहतर सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ-साथ राजनीति में भी सक्रिय रूप से क्रियाशील हैं। इन्हें राजस्थान के ग़रीब लोगों के जीवन को सुधारने और इस दिशा में किये गए उनके प्रयासों के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है। भारत में सूचना का अधिकार लागू करने के लिए उनके द्वारा किये गए प्रयत्न और योगदान प्रशंसनीय हैं। अरुणा रॉय राजस्थान के राजसमंद ज़िले में स्थित देवडूंगरी ग्राम से सम्पूर्ण भारत में संचालित 'मज़दूर किसान शक्ति संगठन' की संस्थापिका और अध्यक्ष हैं।
अरुणा रॉय वर्षों से सामाजिक हित की लड़ाई लड़ती आईं हैं। उन्होंने मजदूर किसान संगठन की स्थापना की। इसके लिए लड़ते-लड़ते सूचना के अधिकार के आंदोलन ने आकार लिया। सामान्य नागरिकों को उनके वैधानिक देय के बतौर जनहित में बुनियादी सूचना हासिल करने का अधिकार दिलवाने का एमकेएसएस का अभियान आज भी लोगों को याद है। उनके संघर्ष की बदौलत आखिरकार 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम पारित हुआ। आरटीआई को बेहतर ढंग से समझने के लिए उनकी यह किताब 'आरटीआई कैसे आई!' महत्वपूर्ण है।
‘‘ब्यावर की गलियों से उठकर राज्य की विधानसभा से होते हुए संसद के सदनों और उसके पार विकसित होते एक जनान्दोलन को मैंने बड़े उत्साह के साथ देखा है। यह पुस्तक, अपनी कहानी की तर्ज पर ही जनता के द्वारा और जनता के लिए है। मैं खुद को इस ताकतवर आन्दोलन के एक सदस्य के रूप में देखता हूँ।’’
– कुलदीप नैयर, मूर्धन्य पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता
‘‘यह कहानी हाथी के खिलाफ चींटियों की जंग की है। एम.के.एस.एस. ने चींटियों को संगठित कर के राज्य को जानने का अधिकार बनाने के लिए बाध्य कर डाला। गोपनीयता के नाम पर हाशिये के लोगों को हमेशा अपारदर्शी व सत्ता-केन्द्रित राज्य का शिकार बनाया गया लेकिन वह जमीन की ताकत ही थी जिसने संसद को यह कानून गठित करने को प्रेरित किया जैसा कि हमारे संविधान की प्रस्तावना में निहित है, यह राज्य ‘वी द पीपल’