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राजस्थानी साहित्य के कवि : राजस्थान का काव्य साहित्य समृद्ध और वृहद है

[Team Kavishala] राजस्थान अपनी समृद्ध संस्कृति के लिए विश्व विख्यात है. यहाँ का रहन सहन, परिवेश, पारम्परिक वेशभूषा, बोली, भाषा गौरवशाली इतिहास बड़ी ही सहजता से किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेता है. किसी भी क्षेत्र की लोक संस्कृति का मूल वहां का समृद्ध साहित्य ही होता है.राजस्थानी साहित्य की संपूर्ण भारतीय साहित्य में अपनी एक अलग पहचान है। राजस्थानी का प्राचीन साहित्य अपनी विशालता एवं अगाधता मे इस भाषा की गरिमा, प्रौढ़ता एवं जीवन्तता का सूचक है । अनकानेक ग्रन्थों के नष्ट हो जाने के बाद भी हस्तलिखित ग्रन्थों एवं लोक साहित्य का जितना विशाल भण्डार राजस्थानी साहित्य का है, उतना शायद ही अन्य भाषा में हो।

राजस्थानी साहित्य के कवि : राजस्थान का काव्य साहित्य समृद्ध और वृहद है .यहाँ कई विश्व विख्यात कवियों ने जन्म लिया है. इन कवियों की रचनाओं में समय काल के अनुसार भाषा, भाव, व शैली का प्रभाव देखने को मिलता है.  

प्रारंभिक व मध्य कालीन कवि -

राजस्थानी साहित्य की विशेषता और समृद्धता को मीरा बाई ने अपनी कविताओं में बड़ी ही गहनता और प्रभावी रूप से चित्रित किया है. मीराबाई (1498-1573) सोलहवीं शताब्दी की एक कृष्ण भक्त और कवयित्री थीं। उनकी कविता कृष्ण भक्ति के रंग में रंग कर और गहरी हो जाती है। मीरा बाई ने कृष्ण भक्ति के स्फुट पदों की रचना की है। मीरा कृष्ण की भक्त हैं।मीरा बाई की कुछ कवितायेँ -

(१)

गली तो चारों बंद हुई हैं, मैं हरिसे मिलूँ कैसे जाय।।

ऊंची-नीची राह रपटली, पांव नहीं ठहराय।

सोच सोच पग धरूँ जतन से, बार-बार डिग जाय।।

ऊंचा नीचां महल पिया का म्हांसूँ चढ्यो न जाय।

पिया दूर पथ म्हारो झीणो, सुरत झकोला खाय।।

कोस कोस पर पहरा बैठया, पैग पैग बटमार।

हे बिधना कैसी रच दीनी दूर बसायो लाय।।

मीरा के प्रभु गिरधर नागर सतगुरु दई बताय।

जुगन-जुगन से बिछड़ी मीरा घर में लीनी लाय।।


(२)

पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो।

वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरू, किरपा कर अपनायो॥

जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।

खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो॥

सत की नाँव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर आयो।

'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो॥


(३)

पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे।

मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी रे।

लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे॥

विष का प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हाँसी रे।

'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनासी रे॥


चंदबरदाई राव (जन्म: संवत 1205 तदनुसार 1148 ई० लाहौर वर्तमान पाकिस्तान में - मृत्यु: संवत 1249 तदनुसार 1192 ई० गज़नी) जाति के चंडिसा राव कलाधी गौत्र के साहित्य के आदिकालीन कवि तथा पृथ्वीराज चौहान के मित्र थे। चंदबरदाई कि लोकप्रिय करती पृथ्वीराज रासो है. प्रस्तुत हैं पृथ्वीराज रासो से कुछ अंश 


पद्मसेन कूँवर सुघर ताघर नारि सुजान।

ता उर इक पुत्री प्रकट, मनहुँ कला ससभान॥

मनहुँ कला ससभान कला सोलह सो बन्निय।

बाल वैस, ससि ता समीप अम्रित रस पिन्निय॥

बिगसि कमल-स्रिग, भ्रमर, बेनु, खंजन, म्रिग लुट्टिय।

हीर, कीर, अरु बिंब मोति, नष सिष अहि घुट्टिय॥

छप्पति गयंद हरि हंस गति, बिह बनाय संचै सँचिय।

पदमिनिय रूप पद्मावतिय, मनहुँ काम-कामिनि रचिय॥


आधुनिक काल के कवि :- राजस्थानी साहित्य के आधुनिक काल में यहाँ की कविता पर पुरातन परंपरा और इतिहास की छाप के साथ साथ नयी अनुभूति का भी प्रभाव पड़ा है. पंडित नरेंद्र मिश्र (05 मार्च 1937- )आधुनिक काल प्रमुख कवियों में से एक है. इनके पूर्वज मेवाड़ राजवंश के राज-पुरोहित रहे हैं । इस लिए उनके मन में मेवाड़ के लिए प्यार और श्रद्धा स्वभाविक है। उन्होने वीर-रस से ओतप्रोत कविताएं लिखी हैं। गोरा बादल पर लिखी इनकी कविता "गोरा बादल" बहु चर्चित और लोक प्रिय है. प्रस्तुत हैं कुछ अंश-


दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी

जिसके कारण मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी

रावल रत्न सिंह को छल से कैद किया खिलजी ने

कालजई मित्रों से मिलकर दगा किया खिलजी ने

खिलजी का चित्तौड़दुर्ग में एक संदेशा आया

जिसको सुनकर शक्ति शौर्य पर फिर अँधियारा छाया

दस दिन के भीतर न पद्मिनी

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