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पं. गिरिधर शर्मा ‘नवरत्न’: हिन्दी साहित्य का राष्ट्रनिष्ठ ध्वजवाहक

हिन्दी साहित्य का द्विवेदी युग स्वातंत्र्य चेतना, समाज सुधार और भाषा के उत्थान का युग था। इस युग के जिन स्वनामधन्य साहित्यकारों ने न केवल कलम से समाज को जागरूक किया, बल्कि राष्ट्रभक्ति को भी साहित्य में प्रतिष्ठा दी, उनमें पं. गिरिधर शर्मा ‘नवरत्न’ का नाम विशेष उल्लेखनीय है। वे मात्र एक साहित्यकार ही नहीं, अपितु अनुवादक, विचारक, समाजसेवक और राष्ट्रभक्त भी थे। उनका जन्म राजस्थान के झालावाड़ जिले के झालरापाटन नामक ऐतिहासिक नगरी में हुआ था।

राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत साहित्य साधना

पं. नवरत्न का साहित्य मुट्ठी भर पाठकों के लिए नहीं था, बल्कि उन्होंने हजारों लाखों देशवासियों के सपनों को अपनी लेखनी से आकार दिया। उनका साहित्य हिन्दी भारती के प्रति समर्पण का जीवंत प्रमाण है। भारत की गुलामी की पीड़ा को उन्होंने गहराई से महसूस किया और यह समझा कि देश को परतंत्रता से उबारने में हिन्दी भाषा और राष्ट्रीय भावना की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है।

उनकी रचनाओं में समाज और राष्ट्र की चेतना, आत्मोत्सर्ग, स्वतंत्रता और देशप्रेम जैसे भाव मुखर रूप से विद्यमान हैं। पं. नवरत्न का देशप्रेम केवल शब्दों तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने भारत की माटी को अपनी आँखों का सुरमा बना लिया था।

प्रथम हिन्दी राष्ट्रगान और ’जय जय जय जय हिन्दुस्तान’ की रचना

1915 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में एक अत्यंत सुंदर और मौलिक भारत माता वंदना प्रस्तुत की, जिसे हिन्दी साहित्य का प्रथम राष्ट्रगीत माना जाता है। 1918 में इंदौर में हुए हिन्दी साहित्य सम्मेलन में महात्मा गांधी की अध्यक्षता में उन्होंने एक अत्यंत प्रेरणास्पद राष्ट्रगान प्रस्तुत किया, जिसमें भारत के सांस्कृतिक वैभव का स्वर्णिम चित्रण था।

किन्तु 1920 में रचित उनका एक अप्रकाशित राष्ट्रगान ’जय जय जय जय हिन्दुस्तान’ अब भी हिन्दी साहित्य के कुछ कोनों में ही सुरक्षित है। यह गान, जो केवल हस्तलिखित रूप में उपलब्ध है, आज भी उतना ही प्रासंगिक और प्रेरणादायक है जितना वह 88 वर्ष पूर्व था।

यह गान उन्होंने अपने शिष्यों सेठ लालचंद और सेठ नेमीचंद के विशेष आग्रह पर रचा था। इस राष्ट्रीय गीत में भारत को धर्मरक्षक, न्यायप्रिय, दुःखहर्ता, हरि को गोद में लेने वाला और विश्वगौरव का प्रतीक बताया गया है। पांच छन्दों में सजे इस गान में पं. नवरत्न ने भारत की सांस्कृतिक अस्मिता, नैतिकता और तेजस्विता का प्रभावी चित्रण किया है।

पं. नवरत्न द्वारा हस्तलिखित और आज तक हिन्दी भारती के साहित्यकारों की नजरों से दूर रहा यह अप्रकाशित राष्ट्रीय गान इस प्रकार है-

जय जय जय जय हिन्दुस्तान

जय जय जय जय हिन्दुस्तान

महिमंडल में सबसे बढके

हो तेरा सम्मान

सौर जगत् में सबसे उन्नत

होवे तेरा स्थान

अखिल विश्व में सबसे उत्तम

है तू जीवन प्रान

जय जय जय जय हिन्दुस्तान

जय जय जय जय हिन्दुस्तान (१)

धर्मासन तेरा बढ़कर है

रक्षक तेरा गिरिवरधर है

न्यायी तू है तू प्रियवर है

है प्रिय तव सन्तान

जय जय जय जय हिन्दुस्तान

महिमंडल में सबसे बढकर

सौर जगत् में सबसे उन्नत

अखिल विश्व में सबसे उत्तम

जय जय जय जय हिन्दुस्तान

जय जय जय हिन्दुस्तान (२)

पैदा हुआ न तू बन्धन को

दुःख से मुक्त करे तू जन को

फिरे न तू कह नीति वचन को

है तेरा शुचि ज्ञान

जय जय.

महिमंडल में.

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