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निदा फ़ाज़ली - एक याद!

बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने

किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है

-निदा फ़ाज़ली 


अपने लेखन नाम निदा से साहित्य जगत में छाप छोड़ देने वाले मुक़तदा हसन फ़ाज़ली साहब का जन्म आज ही के दिन १९३८ में हुआ था। वह मशहूर शायर और गीतकार थे जिन्होंने जिंदगी के उतार-चढ़ाव तथा जीवन के सभी पहलुओं को बहुत ही करीब से जिया जो उनकी कृतियों में साफ़ झलकती हैं। फाजली साहब की ग़ज़लें उनकी शख़्सियत का आईना हैं,जो आज भी उतनी ही साफ़ नजर आती है


कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता..

कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता..

और...

आओ कहीं से

थोड़ी सी मिट्टी भर लाएं

मिट्टी को बादल में गुंथे

नए-नए आकार बनाएं...

-निदा फ़ाज़ली 


निदा साहब ने बहुत छोटी उम्र से ही लिखना आरम्भ कर दिया था। वे मीरा, तुलसी के लेखों को बहुत पसंद करते थे।


सरल भाषा को ही बनाई अपनी लेखनी शैली :

उनकी कक्षा में उनके सामने की पंक्ति में एक लड़की बैठा करती थी जिससे निदा साहब एक अनजाना सा रिश्ता अनुभव करने लगे थे। लेकिन एक दिन कॉलेज के बोर्ड पर एक नोटिस दिखा जिसमे लिखा था कुमारी टंडन का एक्सीडेण्ट से उनका देहान्त हो गया है। इस घटना के बाद निदा बहुत दु:खी हुए जिस पर उन्होंने लिखने का प्रयास किया परन्तु उन्हें अहसास हुआ की उनका अभी तक का लिखा कुछ भी उनके इस दुख को व्यक्त नहीं कर पा रहा है। एक दिन सुबह एक मंदिर के पास से गुजर रहे थे जहाँ पर उन्होंने किसी को सूरदास का भजन मधुबन तुम क्यौं रहत हरे? बिरह बियोग स्याम सुंदर के ठाढ़े क्यौं न जरे? गाते सुना, जिसमें कृष्ण के चले जाने पर उनके वियोग में डूबी राधा और गोपियाँ फुलवारी से पूछ रही होती हैं ऐ फुलवारी, तुम हरी क्यों बनी हुई हो? कृष्ण के वियोग में तुम खड़े-खड़े क्यों नहीं जल गईं? वह सुन कर निदा को लगा कि उनके अंदर दबे हुए दुख की गिरहें खुल रही

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