
न हाथ थाम सके, न पकड़ सके दामन, बड़े करीब से उठकर चला गया कोई... | मीना कुमारी
बॉलीवुड की बेहतरीन अदाकारा "ट्रेजिडी क्वीन और लेडी गुरुदत्त" के नाम से मशहूर मीना कुमारी का जीवन किसी फिल्म की पटकथा जैसा ही था. मीना कुमारी सिर्फ एक अभिनेत्री ही नहीं थीं, बल्कि एक उम्दा कवियित्री भीं थी . उन्होंने अपने जीवन के दुखों को शब्दों में समेट कर कई गजले और नज्मे पिरोयीं. मीना कुमारी "नाज" के नाम से ग़ज़ल और नज्म लिखा करतीं थीं. मीना कुमारी कि एक नज्म की ये पंक्तियाँ उनके जीवन के दुखों को बयां करती है -
‘कोई चाहत है न जरूरत है
मौत क्या इतनी खूबसूरत है
मौत की गोद मिल रही हो अगर
जागे रहने की क्या जरूरत है.
चाहे उनकी फिल्में हों या उनका निजी जीवन, या फिर वो नज्में और शायरी जिन्हें वे तन्हाई में अपनी डायरियों में उकेरा करतीं थीं. मीना कुमारी ने जितना दर्द रुपहले परदे पर प्रदर्शित किया था, उससे कहीं ज्यादा दर्द उन्होंने घूंट-घूंट पिया था और कतरा कतरा जिया था. उन्होंने अपनी बेबसी पर लिखा था कि -
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली
रिमझिम-रिमझिम बूँदों में, ज़हर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दीं दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली
जब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज़ सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली
मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली
होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में, सादा-सी जो बात मिली
चाहे निजी जीवन की बात करें या मूक फिल्मो के दौर से लेकर आज के दौर कि फिल्मो की मीना के अलावा कोई दूसरी अभिनेत्री नहीं हुई, जो अपने जीवन के दर्द-ओ-गम पर ही फनाह हो गयी हो.
मीना कुमारी का जन्म 1 अगस्त 1932 को मुंबई की एक चॉल में हुआ था। उनका असली नाम महजबीन बानो था। उनकी मां इकबाल बानों और पिता अली बख्श की जिंदगी बहुत अच्छी नहीं चल रही थी। थिएटर में हारमोनियम बजाकर मीना कुमारी के पिता घर का खर्च चलाते थे। मीना कुमारी की दो बड़ी बहने भी थीं। वह तीसरी बेटी थीं। इसलिए पिता ने उन्हें जन्म के बाद ही एक अनाथालय के बाहर रख दिया था। लेकिन फिर बच्ची के रोने की आवाज सुनकर वो पसीज गए और मीना कुमारी दोबारा उठा लिया.
असफल साबित हुआ प्रेम विवाह :- एक बार मीना कुमारी का एक्सीडेंट हुआ तब कमाल अमरोही ने उन्हें संभाला. इस दौरान दोनों बहुत करीब आ गए थे. प्रेम शुरू हुआ. फिर मीना कुमारी और कमल अमरोही ने परिवार वालों के खिलाफ जाते हुए शादी कर ली.
कमाल और मीना का रिश्ता लगभग एक दशक चला. बाद में इसमें खटास आने लगी. मीना कुमारी को कमाल का स्वभाव अखरने लगा था.कमाल ने मीना पर कई बंदिशें लगा रखी थीं. जैसे उनके मेक-अप रूप में किसी मर्द का घुसना मना था. इसी तरह उन्होंने एक असिस्टेंट मीना कुमारी के साथ लगा रखा था ताकि वे हर पल नजर रख सके. लेकिन मीना ने हर नियम को तोड़ा.इस बात पर कमाल इतना गुस्सा हो गए उन्होंने तीन बार 'तलाक' बोलकर मीना को अकेला छोड़ दिया था. शायद इसी दर्द को मीना कुमारी ने कुछ यूँ बयां किया है -
'न हाथ थाम सके, न पकड़ सके दामन, बड़े करीब से उठकर चला गया कोई।'
तीन तलाक का दर्द सहा, जीनत अमान के पिता साथ हुआ हलाला- कहते हैं जब कमाल अमरोही को अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह फिर मीना कुमारी के पास आ गये उन्होंने मीना से मांफी मांगी मीना मान गई लेकिन इस्लाम धर्म के अनुसार पति तलाक देने के बाद फिर साथ रहना चाहे तो वह बिना 'हलाला' के नहीं रह सकता। तलाक के दर्द के बाद दोबारा साथ रहने के लिए अब मीना को धर्म के नाम पर किसी और मर्द के साथ हमबिस्तर होना पड़ा था। मीना के 'हलाला' के लिए मीना की शादी अमान उल्ला खान (जीनत अमान के पिता) से हुई थी।
अगर धर्म के नाम पर किसी दूसरे के साथ हमबिस्तर होना होता है तो 'मुझमें और वेश्या में क्या फर्क रहा?'तीन तलाक और फिर हलाला का दंश झेल चुकी मीना कुमारी ने कहा था कि जब धर्म के नाम पर मुझे अपने जिस्म को किसी दूसरे मर्द को सौंपना पड़ा तो फिर मुझमें और वेश्या में क्या फर्क रहा?' कमाल के साथ दूसरी शादी के लिए हलाला कि घटना ने मीना को अंदर तक झकझोर कर रख दिया था। मीना मानसिक तनाव में रहने लगी थी जिसके कारण ही उन्होंने शराब पीना शुरू कर दिया था ।
लाल बहादुर शास्त्री ने मीना कुमारी से मांगी थी माफी :- भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को 'पाकीजा' फिल्म की शूटिंग देखने के लिए आमंत्रित किया गया था। मीना कुमारी और लाल बहादुर शास्त्री से जुड़े इस दिलचस्प वाकये का जिक्र कुलदीप नैयर ने अपनी किताब ‘आन लीडर एंड आइकॉन: फ्राम जिन्ना टू मोदी’ में किया है।
उन्होंन