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मैथिलीशरण गुप्त को हमारा " नमन "

वह हृदय नहीं है पत्थर है,

जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥

[गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही']


मैथिलीशरण गुप्त काव्य जगत में उदित ऐसा सितारा थे जिन्होंने खड़ी बोली को एक नई पहचान दी। वे ३ अगस्त १८८६ को जनमे तथा १२ दिसंबर १९६४ को दुनिया से विदा हो गए। साहित्य जगत में वे ' दद्दा ' के नाम से जाने गए। सन १९५४ उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। उनका काव्य वैषणव विचार धरा से परिपूर्ण था तो दूसरी ओर सुधर युग की राष्ट्रीय नैतिक चेतना से प्रेरित भी था। भारत भारती उनकी प्रसिद्ध रचना है तो साकेत उनकी रचना का सर्वोच्च शिखर  है। नैतिक तथा मानवीय धर्मो का रक्षण मैथिलीशरण गुप्त जी कि रचना की पहचान थी। जो यशोधरा , पंचवटी  ,द्वापर साकेत जैसे काव्य संग्रह में मुखरित होते है।उनकी बहुत-सी रचनाएँ रामायण और महाभारत पर आधारित हैं। 


उनकी कविताएँ काव्य जगत की मील का पत्थर है। जो वर्षो बाद भी लोगो के मन को प्रेरित , उद्वेलित और जागृत करती रहेंगी। उन्होंने न सिर्फ मन के गहवर को स्पर्श किया बल्कि अपनी काव्य शैली के माध्यम से लोगों को निराशा हताशा के गर्त से बाहर निकाल  कर उन्हें स्वयं में आत्मगर्वित  होने का भाव भी पैदा किया। 'नर हो न निराश करो मन को ' यह कविता कितने ही लोगो के प्रेरणा का श्रोत बना है और बनता&nb

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