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विद्या और ज्ञान के जीवंत प्रतीक थे महा महोपाध्याय पं. गोपीनाथ कविराज।

महा महोपाध्याय पं. गोपीनाथ कविराज: एक युगद्रष्टा विद्वान



महा महोपाध्याय पंडित गोपीनाथ कविराज भारतीय दर्शन और तंत्र शास्त्र के अद्वितीय मनीषी थे। वे केवल तंत्र के ही प्रकांड पंडित नहीं थे, बल्कि वेद-वेदांग, न्याय, सांख्य-योग, बौद्ध और जैन दर्शन के भी समर्पित साधक और गहन ज्ञाता थे। उनकी विद्वता का आलम यह था कि उस समय के विद्वान उन्हें "चलता-फिरता विश्वकोश" कहा करते थे। शास्त्र उनके लिए केवल पुस्तक की वस्तु नहीं, बल्कि जीवित अनुभूति थे — वे उनके कंठस्थ थे।

देश-विदेश से विद्वान, शोधार्थी और साधक काशी आते थे, केवल उनके सान्निध्य में ज्ञान प्राप्त करने हेतु। उन्होंने न केवल तंत्र को भारत में पुनः प्रतिष्ठित किया, बल्कि उसे वैश्विक पटल पर विशिष्ट स्थान भी दिलाया। उनके प्रयासों से ही संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में तंत्रागम विभाग की स्थापना संभव हो सकी। उनका निधन 12 जून 1976 को वाराणसी में हुआ।

जनसंपर्क अधिकारी शशींद्र मिश्र के अनुसार, पं. गोपीनाथ कविराज ने योगिराज विशुद्धानंद परमहंस देव से मलदहिया स्थित विशुद्धानंद

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