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किसानो की दुर्दशा बयां करती है इन साहित्यकारों की रचनाएं

[Kavishala Labs] देश की आजादी के दशकों बाद भी किसानो की दशा में कोई खास सुधार नहीं हो सका है. पहले भी किसान कभी दैवीय आपदा तो कभी साहूकारों के कर्ज के बोझ तले दबकर दम तोड़ देता था. और आज भी किसान की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हो सका है. कई लेखक और कवियों ने किसानो की समस्याओं को कलमबद्ध किया है. पढ़िए किसानो पर लिखी कुछ कविताएं व कहानियां...

 

(१) प्रेमचंद (३१ जुलाई १८८० – ८ अक्टूबर १९३६) हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे. उन्होंने किसानो व मजदूरों के जीवन पर कई कहानियां लिखी है.

 

मुंशी प्रेमचंद की कहानी : सवा सेर गेंहू - 

 

...मजूर की जमानत कौन करता, कहीं शरण न थी, भागकर कहाँ जाता, दूसरे दिन से उसने विप्रजी के यहाँ काम करना शुरू कर दिया। सवा सेर गेहूँ की बदौलत उम्र-भर के लिए गुलामी... पढ़े पूरी कहानी  

 

 

(२) नागार्जुन (३० जून १९११ - ५ नवम्बर १९९८) हिन्दी और मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे. प्रगतिशील विचारधारा के साहित्यकार नागार्जुन ने हिन्दी के अतिरिक्त मैथिली संस्कृत एवं बाङ्ला में मौलिक रचनाएँ भी कीं तथा संस्कृत, मैथिली एवं बाङ्ला से अनुवाद कार्य भी किया. नागार्जुन जनकवि के रूप में विख्यात है.

 

नागार्जुन की कविता : अकाल और उसके बाद -

 

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास

कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास

(पढ़िए पूरी कविता)

 

(३) राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (३ अगस्त १८८६ – १२ दिसम्बर १९६४) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे. हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं. उन्हें साहित्य जगत में 'दद्दा' नाम से सम्बोधित किया जाता था. 

 

मैथिलीशरण गुप्त की कविता : किसान 

 

हेमन्त में बहुदा घनों से पूर्ण रहता व्य

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