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"खूनी बैसाखी" वो कविता जिससे डर कर अंग्रेजों ने कर दिया था प्रतिबंधित


पंजाब की माटी प्राचीन काल से ही समृद्ध रही है. चाहे बात की जाए पंजाब के किसानो और लहलहाते खेतों की, या देश पर जान न्योछावर कर देने वाले वीर सपूतों की या फिर जन चेतना में क्रांति की ज्वाला जलाने वाले साहित्य की पंजाब राज्य शुरू से ही समृद्ध और समाज व देश के लिए खुद को न्योछावर करने में सबसे आगे रहा है. पंजाब के साहित्यकारों ने न केवल पंजाबी-हिंदी साहित्य को अपनी महत्वपूर्ण रचनाओं से समृद्ध किया बल्कि उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की खिलाफत करने के लिए भी अपनी कलम चलाई.


नानक सिंह की कविता "खूनी बैसाखी" से खौफजदा थे अंग्रेज- जलियावाला बाग में अंग्रेजो ने जो नरसंहार किया था उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. जनरल डायर की इस क्रूरता को करीब महसू करने वाले दो लोग ऐसे थे जो लाशों की ढेर में जिंदा बच गए थे. उनमें से एक थे उधम सिंह और दूसरे थे नानक सिंह. कहा जाता है कि 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी वाले दिन रॉलेट ऐक्ट के विरोध में भारतीय नेता जलियां वाले बाग में अपनी-अपनी तकरीर दे रहे थे , उस समय 22 वर्ष के युवा नानक सिंह वही मौजूद थे. गोलीबारी होने पर नानक सिंह बेहोश हो गए थे. लेकिन उन्होंने इस क्रूरता को पास से देखा व महसूस किया था.


जलियांवाला हत्याकांड के करीब एक वर्ष बाद नानक सिंह ने खूनी बैसाखी नाम से 1920 में एक लंबी कविता लिखी थी. यह कविता उन्होंने पंजाबी में लिखी थी. नानक सिंह की यह कविता क्रांतिकारियों को अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में हौसला दे रही थी. कविता के प्रकाशन के कुछ समय बाद अंग्रेजों ने "खूनी बैसाखी" कविता को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मानते हुए इसे प्रतिबंधित कर दिया और इसकी मूल प्रति जब्त कर ली थी.


नानक सिंह (4 जुलाई, 1897 - 28 दिसम्बर, 1971) पंजाबी भाषा के कवि, गीतकार एवं उपन्यासकार थे. उनका मूल नाम हंस राज था. उन्होने कई उपन्यासों की रचना की. खूनी बैसाखी के अलावा "जख्मी दिल" कविता के लिए भी नानक सिंह को जेल जाना पड़ा था. प्रस्तुत है क्रांति की अलख जलाने वाली नानक सिंह की कुछ कविताएं  -


[१] जुबां को ताड़ना

ऐ जुबां खामोश वरना काट डाली जाएगी।

खंजर-ए-डायर से बोटी छांट डाली जाएगी।


चापलूसी छोड़कर गर कुछ कहेगी, साफ तू,

इस खता में मुल्क से फौरन निकाली जाएगी।


देख गर चाहेगी अपने हमनशीनों का भला,

बागियों की पार्टी में तू भी डाली जाएगी।


गर इरादा भी किया आजाद होने के लिए,

मिसले अमृतसर मशीन-ए-गन मंगा ली जाएगी।


गर जरा सी की खिलाफत तू ने रौलट बिल की,

मार्शल लॉ की दफा तुम पर लगा दी जाएगी।


मानना अपने ना हरगिज़ लीडरों की बात तू

वरना सीने पे तेरे मारी दुनाली जाएगी।


खादिमाने मुल्क की मजलस में गर शिरकत हुई,

दी सजा जलियां वाले बाग वाली जाएगी।


[२] हिन्दीओं को इनाम

नहीं कोई दुनिया में सानी तुम्हारी।

चलो देख ली हुक्मरानी तुम्हारी।


नफा कुछ न कानून रौलट से पाया,

बढ़ा दी मगर बदगुमानी तुम्हारी।


हवाई जहाजों से गोले गिराना,

न भूलेंगे हम मेहरबानी तुम्हारी।


सिले में फतेह की दिया मार्शल लाअ,

मिली है फक्त ये निशानी तुम्हारी।

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