
गोपालदास नीरज एक सदी का इतिहास हैं. नीरज एक सेतु हैं हिंदी श्रेताओं के लिए. उन्होंने चार पीढ़ियों के साथ मंच साझा किया है | डॉ. कुमार विश्वास
गोपालदास नीरज एक सदी का इतिहास हैं. नीरज एक सेतु हैं हिंदी श्रेताओं के लिए. उन्होंने चार पीढ़ियों के साथ मंच साझा किया है.
वे महाकवि निराला के साथ मंच पर बैठे, पंतजी के प्रिय कवि रहे, महादेवी जी के साथ बैठकर काव्य पाठ किया है. राष्ट्रकवि दिनकर ने उन्हें हिंदी की वीणा कहा था. वाचिक परंपरा के वे एक ऐसे सेतु थे जिस पर चलकर महाप्राण निराला, पंत, महादेवी, बच्चन, दिनकर, भवानी प्रसाद मिश्र की पीढ़ी के श्रोता मुझ जैसे नवांकुरों तक सहज ही पहुंच सके.
नीरज जी हमेशा रामधारी सिंह दिनकर जी का बड़ा सम्मान करते थे. दिनकर ने एक गीत लिखा था 'जब गीतकार मर गया, चांद रोने आया, चांदनी मचलने लगी कफ़न बन जाने को'. उसके प्रतिउत्तर में उन्होंने दिनकरजी को प्रणाम करते हुए 'जब गीतकार जन्मा' लिखा. वह गीत इस तरह है, 'जब गीतकार जन्मा, धरती बन गई गोद, हो उठा पवन चंचल, अना खुलने को पुत्रियों ने दिशि-दिशि गोरा, बजाई शहनाई आई गुठागिनी कोयल सोहर गाने को.'
उसके बाद वह दूसरी पीढ़ी के कवियों के साथ बैठे. भवानी प्रसाद मिश्र, शिवमंगल सिंह सुमन, गिरिजाकुमार माथुर, सोम ठाकुर जैसे कवियों के साथ मंच साझा किया. उसके बाद फिर नीरज तीसरी पीढ़ी के कवियों के साथ बैठे. कुंवर बेचैन, अशोक चक्रधर, हास्यकवि अर्जुन अल्हड़ उनमें शामिल रहे हैं. उसके बाद वे मेरे जैसे नई पीढ़ी के कवियों के साथ भी आए हैं. इस तरह नीरज का हमें छोड़कर चले जाने का मतलब है कि हिंदी की चार पीढ़ियों का पुल गिरा हैमैं उनका प्रिय मंच संचालक रहा हूं. जब मैं मंच का संचालन किया करता था, वे मुझे अपने साथ बैठाते थे. वह अक्सर एक गीत सुनाते थे. वह कहते थे कि जब मौत का दूत उन्हें बुलाए आया तो उन्होंने उसे एक गीत सुनाया. इस गीत को वह लगभग 75 वर्ष की आयु से सुनाते आ रहे थे. वह गीत है, 'ऐसी क्या बात है, चलता हूं अभी चलता हूं/ गीत एक और जरा झूम के गा लूं तो चलूं.'
इस पर मैं कहता था, देखों नीरज जी को, रोज मौत का देवता आता है इन्हें ले जाने के लिए और वे उसे गीत सुनाकर वापस भेज देते हैं...
मैं उन्हें 'गीत-गन्धर्व' कहता था. जैसे किसी सात्विक उलाहने के कारण स्वर्ग से धरा पर उतरा कोई यक्ष हो. यूनानी गठन का बेहद आकर्षक गठा हुआ, किन्तु लावण्यपूर्ण चेहरा, पनीली आंखें, गुलाबी अधर, सुडौल गर्दन, छह फुटा डील-डौल, सरगम को कंठ में स्थायी विश्राम देने वाला मंद्र-स्वर, ये सब अगर भाषा के खांचे में ढलकर सम्मोहन की चांदनी में भू पर उतरे तो जैसे नीरज जी कहलाए.
नीरज जी की लोकप्रियता फिल्मी गीतों की वजह से भी बहुत सही. सोचिए, क्या समय रहा होगा वह 60 और 70 के दशक के बीच का, जब देव आनंद भी उनके गीत गा रहे थे 'दिल की कलम से'. उधर, राजकपूर भी उनका गीत गा रहे थे, 'ऐ भाई जरा देख के चलो.'
'मेरा नाम जोकर' फिल्म का मुखड़ा जब उन्होंने लिखा, 'कहता है जोकर सारा जमाना.' इस पर और तमाम गीतकारों ने भी राजकपूर को अपने गीत भेजे थे. उनमें से कुछ गीतकार राजकपूर जी के पास गए और कहा कि ये गीत क्यों ले लिया. इस पर राज साहब ने कहा था कि नीरज ने गीत नहीं लिखा, बल्कि मेरे जीवन का पूरा दर्शन लिख दिया है. शोमैन राजकूपर कौन है, यही बात उन्होंने अपने गीत में कही थी.
मैं नीरज जी के साथ ही रहना चाहता था, जबकि अन्य कवि उनका सम्मान करते हुए उनसे दूरी बनाकर रहते थे, लेकिन मैं उनके साथ ही रहता था. मुझे पता था कि इससे मुझे थोड़ा बहुत कष्ट होगा और उन्हें भी कुछ परेशानी होगी, लेकिन उनके संस्मरण सुनने के लालच में मैं हमेशा उनके साथ लगा रहता था. एक संस्मरण में उन्होंने बताया कि एसडी बर्मन ने उनसे प्यार की परिभाषा लिखने के लिए कहा था, तब उन्होंने लिखा, 'शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब'.
'प्रेम पुजारी' फिल्म में नीरज अपने सभी रंगों में हैं. एक तरफ तो वह राष्ट्रीय अस्मिता का गीत 'ताकत वतन की हमसे है' लिखते हैं. उस गीत को सुनकर लगता है कि दिनकर की परंपरा का कवि भारतीय सैन्य अस्मिता का रेखांकित करता है. फिर एक फिल्म में लिखते हैं, 'ओ नीरज नैना सुन जरा' में एक प्रेमी कवि का आत्मविश्वास झलकता है. कैसा समय था जब 'ओशो' रजनीश अपने हर प्रवचन में, हर भाषण में नीरज का उल्लेख करते थे, 'सपना क्या है? नयन सेज पर, सोया हुआ आंख का पानी.' नीरज जी से मेरा पहला परिचय मेरे अपने ही गांव पिलखुवा में एक कवि सम्मेलन के दौरान हुआ था. उस समय मैं छोटा बच्चा था और कारवां गुजर गया रिलीज हो चुका था. यह मुझे समझ में आ गया था. कारवां गुजर गया कि तो बहुत पैरोडी बनी थीं. सत्यदेव शास्त्री भोपू ने लिखा था, चोर माल ले गए औ