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कवि गंगा दास खड़ी बोली हिन्दी साहित्य के भीष्म पितामह


हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में अनेक विद्वानों, संतो और साहित्यकारों ने विशेष योगदान दिया है. इन साहित्यकारों के योगदान का ही फल है जो आज हिंदी साहित्य सम्पूर्ण विश्व में अपनी अलग पहचान बनाये हुए है. गंगा दास एक ऐसे ही साहित्यकार थे जिन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में अपना विशेष योगदान दिया है.


गंगा दास (1823- 1913) अपने समय के श्रेष्ठ कवि, प्रकाण्ड पण्डित और प्रसिद्ध सन्त थे. उनके शिष्यों की संख्या भी काफी थी. महान दार्शनिक, भावुक भक्त, उदासी महात्मा और एक महाकावि के रूप में भी इन्हें काफी ख्याति मिली थी. उनके अनेक शिष्य पद गा-गाकर लोगों को सुनाया करते थे. अनेक विद्वान उन्हें खड़ी बोली का प्रथम कवि मानते हैं. 


गंगा दास ने अपने जीवन काल में 50 काव्य-ग्रन्थों और अनेक स्फुट निर्गुण पदों की रचना की. इनमें से 45 काव्य ग्रन्थ और लगभग 3000 स्फुट पद प्राप्त हो चुके हैं. इनमें से 25 कथा काव्य और शेष मुक्तक हैं. ज्ञान, भक्ति और काव्य की दृष्टि से संत-कवि गंगा दास का व्यक्तित्व अनूठा है. परन्तु इनका काव्य अनुपलब्ध होने के कारण हिन्दी साहित्य में इनका उल्लेख नहीं हो पाया. कई विद्वानों ने तो इन्हें खड़ी बोली हिन्दी साहित्य का भीष्म पितामह कहा है. 


गंगा दास द्वारा हिंदी साहित्य हेतु दिया गया योगदान अतुलनीय है. उनके द्वारा रचित काव्य रचनाओं पर कई विद्वान साहित्यकारों ने अपने मत रखे हैं -

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार "हिन्दी साहित्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका के अतिरिक्त संत काव्य की सौन्दर्य दृष्टि और कला पर संत गंगा दास का काव्य सुंदर प्रकाश डालता है"


डॉ रामकुमार वर्मा ने कहा था कि "ज्ञान भक्ति और काव्य की दृष्टि से संत कवि गंगा दास विशेष प्रतिभावान रहे है परन्तु इनका काव्य अनुपलब्ध होने के कारण हिन्दी साहित्य के इतिहास में इनका उल्लेख नहीं हो सका था"


डॉ विजयेन्द्र स्नातक के अनुसार "संत कवि गंगादास का काव्य भारतेंदु पूर्व खड़ी बोली हिन्दी काव्य का उच्चतम निर्देशन है और हिन्दी साहित्य के इतिहास की अनेक पुराणी मान्यताओं के परिवर्तन का स्पष्ट उद्घोष भी करता है"


डॉ गोपीनाथ तिवारी - "जब भारतेंदु और ग्रियर्सन प्रभृति विद्वान खड़ी बोली को हिन्दी काव्य रचना के लिए अनुपयुक्त मान रहे थे उससे पहले केवल संत गंगादास अनेक सुंदर छंदों और वृत्रों द्वारा खड़ी बोली के कलापूर्ण और सुंदर काव्य की अनेक रचनाएं प्रस्तुत कर चुके थे"


गंगा दास के काव्य में मानवीय स

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