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कालजयी उपन्यास 'रागदरबारी': ऐसी किताब जिसने सिखाया कि व्यंग्य कितनी खतरनाक चीज़ है

‘राग दरबारी’ के व्यंग्य आज के समय में भी उतने ही खरे और चोट करने वाले हैं!

व्यंग्य प्रधान उपन्यास में ग्रामीण भारत और सरकारी तंत्र का जो खाका शुक्ल जी ने खींचा है, उसकी बराबरी नहीं हो सकती. मगर खुद श्रीलाल शुक्ल इस किताब से खुश नहीं रहते थे. उनका कहना था कि राग दरबारी ने उनकी दूसरी रचनाओं को दबा दिया. ‘मकान’, ‘विश्रामपुर का संत’ और ‘राग विराग’ जैसी किताबों की चर्चा उतनी नहीं हुई, जितनी ‘राग दरबारी’ की हुई.

वह हमेशा मुस्कुराकर सबका स्वागत करते थे लेकिन अपनी बात बिना लाग-लपेट कहते थे। व्यक्तित्व की इसी ख़ूबी के चलते उन्होंने सरकारी सेवा में रहते हुए भी व्यवस्था पर करारी चोट करने वाली 'राग दरबारी' जैसी रचना हिंदी साहित्य को दी! वह सहज थे लेकिन सतर्क, विनोदी लेकिन विद्वान, अनुशासनप्रिय लेकिन अराजक। वह अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत और हिन्दी भाषा के विद्वान थे, साथ ही संगीत के शास्त्रीय और सुगम दोनों पक्षों के रसिक-मर्मज्ञ भी।

आज समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिये विख्यात एवं उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठित, 130 से अधिक पुस्तकों के लेखक श्रीलाल शुक्ल का जन्मदिन है। वह 1949 में राज्य सिविल सेवा - पीसीएस में चयनित हुए और 1983 में भारतीय प्रशासनिक सेवा - आईएएस से सेवानिवृत्त हो गए। 28 अक्टूबर 2011 को 86 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। अपनी लोकप्रिय कृतियों पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान, यश भारती, पद्मभूषण, ज्ञानपीठ आदि शीर्ष सम्मान मिले! श्रीलाल शुक्ल का व्यक्तित्व अपने आप में एक मिसाल था। वह हमेशा मुस्कुराकर सबका स्वागत करते थे लेकिन अपनी बात बिना लाग-लपेट कहते थे। व्यक्तित्व की

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