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इस साहित्यकार ने लिखा हिन्दी साहित्य का प्रथम राजनीतिक उपन्यास

[Kavishala Labs] हिंदी साहित्य में अनुपम कृतियों की रचना करने वाले विश्वविख्यात साहित्यकार भगवती चरण वर्मा बहुमुखी प्रतिभा के धनि थे. उन्होंने मनोविज्ञान, दर्शन, अध्यात्म, राजनीति और समाज पर उत्कृष्ट रचनाएं रची है. साथ ही वे छायावादी कवि और व्यंगकार भी थे. 


भगवती चरण वर्मा (३० अगस्त १९०३ - ५ अक्टूबर १९८८) हिन्दी के कवि, लेखक, उपन्यासकार व व्यंग्यकार थे. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के शफीपुर गाँव में हुआ था. उन्होंने साहित्य सृजन की शुरुआत कविता लेखन से की थी . फिर बाद में वे उपन्यासकार के रूप में विख्यात हुए. कुछ दिनों ‘विचार’ नामक साप्ताहिक का प्रकाशन-संपादन किया , इसके बाद मुंबई में फिल्म-कथालेखन तथा दैनिक ‘नवजीवन’ का सम्पादन, फिर आकाशवाणी के कई केंन्दों में कार्य किया. तत्पश्चात 1957 से आजीवन स्वतंत्न साहित्यकार के रूप में लेखन करते रहे.  


हिन्दी साहित्य के प्रथम राजनीतिक उपन्यास की रचना :- भगवती चरण वर्मा ने सन् १९४८ में "टेढ़े मेढ़े रास्ते" नामक उपन्यास की रचना की. यह उनका प्रथम वृहत उपन्यास था जिसे हिन्दी साहित्य के प्रथम राजनीतिक उपन्यास का दर्जा मिला. टेढ़े-मेढ़े रास्ते को भगवती चरण वर्मा ने अपनी प्रथम शुद्ध बौद्धिक गद्य-रचना माना है. 


चित्रलेखा से मिली ख्याति :- चित्रलेखा उपन्यास भगवती चरण वर्मा द्वारा रचित एक विशिष्ट उपन्यास है. उन्होंने अपनी इस रचना में, अध्यात्म, मनोविज्ञान और दर्शन का अनुपम प्रयोग किया है. चित्रलेखा न केवल भगवतीचरण वर्मा को एक उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठा दिलाने वाला पहला उपन्यास है बल्कि हिन्दी के उन विरले उपन्यासों में भी गणनीय है, जिनकी लोकप्रियता लगातार काल की सीमा को लाँघती रही है. चित्रलेखा की कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है-पाप क्या है? उसका निवास कहाँ है ? इन प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए महाप्रभु रत्नांबर के दो शिष्य, श्वेतांक और विशालदेव, क्रमश: सामंत बीजगुप्त और योगी कुमारगिरि की शरण में जाते हैं. और उनके निष्कर्षों पर महाप्रभु रत्नांबर की टिप्पणी है, ‘‘संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है.’’


हिंदी साहित्य में भगवती चरण वर्मा का योगदान अतुलनीय व अविस्मरणीय है. उनके उपन्यास ‘चित्रलेखा’ पर दो बार फिल्म-निर्माण हुआ. साथ ही ‘भूले-बिसरे चित्र’ साहित्य अकादमी से सम्मानित भी किया गया. उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७१ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. 


पढ़िए भगवती चरण वर्मा की कुछ कविताएं


[१]


हम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहाँ कल वहाँ चले

मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले

आए बनकर उल्लास कभी, आँसू बनकर बह चले अभी

सब कहते ही रह गए, अरे तुम कैसे आए, कहाँ चले

किस ओर चले? मत ये पूछो, बस चलना है इसलिए चले

जग से उसका कुछ लिए चले, जग को अपना कुछ दिए चले

दो बात कहीं, दो बात सुनी, कुछ हँसे और फिर कुछ रोए

छक कर सुख-दुःख के घूँटों को, हम एक भाव से पिए चले

हम भिखमंगों की दुनिया में, स्वछन्द लुटाकर प्यार चले

हम एक निशानी उर पर, ले असफलता का भार चले

हम मान रहित, अपमान रहित, जी भर कर खुलकर खेल चुके

हम हँसते हँसते आज यहाँ, प्राणों की बाजी हार चले

अब अपना और पराया क्या, आबाद रहें रुकने वाले

हम स्वयं बंधे थे और स्वयं, हम अपने बन्धन तोड़ चले

 

[२] 

कल सहसा यह सन्देश मिला

सूने-से युग के बाद मुझे

कुछ रोकर, कुछ क्रोधित हो कर

तुम कर लेती हो याद मुझे।


गिरने की गति में मिलकर

गतिमय होकर गतिहीन हुआ

एकाकीपन से आया था

अब सूनेपन में लीन हुआ।


यह ममता का वरदान सुमुखि

है अब केवल अपवाद मुझे

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