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हिंदी साहित्य में अविस्मरणीय है शिवपूजन सहाय का योगदान


हिंदी साहित्य में कई साहित्यकार ऐसे हुए हैं जिन्होंने साहित्य की अलग-अलग विधाओं में उत्कृष्ट रचनाये रची है. शिवपूजन सहाय ऐसे ही साहित्यकार रहे हैं. श्री शिवपूजन सहाय ने हिंदी भाषा और साहित्य के किसी एक विशेष क्षेत्र या एक विधा में काम नहीं किया. उनका लेखन क्षेत्र विस्तृत था. वे समाज-सुधार, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और राष्ट्रीय जागरण के तंत्रों से जुड़े हुए थे


शिवपूजन सहाय (जन्म अगस्त 1893, शाहाबाद, बिहार; मृत्यु- 21 जनवरी 1963, पटना).हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार, सम्पादक और पत्रकार के रूप में रूप में जाने जाते है. उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन 1960 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. वहीँ उन्हें 1962 में भागलपुर विश्वविद्यालय द्वारा दी. लिट्. की मानक उपाधि भी दी गयी.


शिवपूजन सहाय ने साहित्य की विविध विधाओं में में रचना की . उपन्यास, कहानी, निबंध, जीवनी, संस्मरण, बाल साहित्य तथा व्यंग्य-विनोद आदि विविध विधाओं पर लेखनी चलाकर उन्होंने साहित्य-सेवा का प्रशंसनीय कार्य किया. उनके द्वारा रचित रचनाएं  साहित्य गुणवत्ता और परिमाण, दोनों दृष्टियों से बहुआयामी है. उन्होंने सत्तर वर्ष की आयु तक साहित्य, संस्कृति, भाषा, समाज-सुधार, धर्म और राष्ट्रीय समस्याओं पर लेख लिखे तथा पचास से अधिक भाषण दिए. उपन्यास के क्षेत्र में एक ही उपन्यास ‘देहाती दुनिया’ लिखकर अपना स्वतंत्र स्थान बनाया. भोजपुर जनपद के जनजीवन पर ऐसी मौलिक रचना न तो उनसे पहले किसी ने लिखी थी, और न ही उनके बाद कोई अन्य लेखक देहात का वैसा सजीव चित्र अंकित कर सका. 


शिवपूजन सहाय का हिन्दी के गद्य साहित्य में एक विशिष्ट स्थान है. उनकी भाषा बड़ी सहज और आकर्षित करने वाली थी. उन्होंने अपनी रचनाओं में उर्दू के शब्दों का प्रयोग काफी मात्रा में किया. शिवपूजन सहाय ने कहीं-कहीं

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