
हिंदी साहित्य में आदिकाल से ही प्रकृति और पर्यावरण से प्रेम व इसके संरक्षण की बात कही गई है। हिंदी साहित्य अपनी गहनता और विविधता के साथ हमें प्रकृति और पर्यावरण के महत्व को समझाने में सहायक है। पर्यावरण न केवल हमारी जीवन शैली का एक अभिन्न अंग है, बल्कि यह हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण प्रेरणा स्रोत भी रहा है। प्राचीन हिंदी साहित्य में प्रकृति और इसके तत्वों को भगवान या परमात्मा के रूप में देखा जाता था। आज (26 सितम्बर) पूरी दुनिया विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस मना रही है। विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस का उद्देश्य हमें पर्यावरण के संरक्षण के लिए प्रेरित करना है। सर्व विदित है कि एक अस्वस्थ पर्यावरण न सिर्फ मानवता बल्कि पृथ्वी के समस्त जीवों के लिए घातक है। आज विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर हम आपके साथ साझा कर रहें हैं हिंदी साहित्य में प्रकति प्रेम व संरक्षण के सन्देश।
रामचरित मानस में वृक्षारोपण का सन्देश
तुलसीदास कृत रामचरित मानस में तुलसीदास ने सीता व लक्षमण द्वारा किये गए वृक्षारोपण का चित्रण किया है। उन्होंने लिखा है -
"तुलसी तरुवर विविध सुहाए।
कहुं-कहुं सिय, कहुं लखन लगाए”।।
इस दोहे में तुलसी कहते हैं कि सीता व लक्षमण द्वारा लगाए गए विविध प्रकार के पौधे बहुत ही सुन्दर दिखाई दे रहे हैं। यहाँ तुलसी दास बड़ी ही बारीकी से हमें वृक्षारोपण के लिए प्रेरित कर रहे हैं। निश्चय ही तुलसीदास के समय भारत में पेड़ों और जंगलों की संख्या आज की अपेक्षा अधिक थी, किन्तु उस काल खंड में रचित अपने काव्य में वृक्षारोपण को इंगित करना तुलसी दास का प्रकृति प्रेम दर्शाता है। और हमें प्रकृति संरक्षण व पौध रोपण की प्रेरणा देता है।
जल संरक्षक पर रहीम दास -
"रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥"
यह दोहा रहीम के प्रसिद्ध दोहों में से एक है। इस दोहे में रहीम पानी की महत्वपूर्णता पर प्रकाश डालते हैं। रहीम कहते हैं कि हमें पानी की कद्र करनी चाहिए और इसे संरक्षित रखना चाहिए। बिना पानी के सभी चीजें अधूरी होती हैं, जैसे कि अनुपजाऊ भूमि। उन्होंने पानी के महत्व स्पष्ट करते हुए बताया कि मोती पानी के बिना अपनी चमक खो देता है, मानव पानी के बिना जीवन जीने के लिए सक्षम नहीं होता और चूना बिना पानी के पत्थर बन जाता है। अतः जल संरक्षण बहुत जरुरी है। पानी ही जीवन का आधार है, और इसका संरक्षण हम सभी की जिम्मेदारी है। यह दोहा आज पर्यावरण कि स्थिति के लिए भी प्रासंगिक है, पानी की कमी और जल संकट बड़ी समस्याओं में से एक बन गई है। इसलिए, हमें रहीम के इस मार्गदर्शन को अपने जीवन में अपनाना चाहिए और पानी का उचित तरीके से उपयोग करना चाहिए।
प्रकृति के सुकुमार सुमित्रानंदन पंत का प्रकृति प्रेम
सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति का सुकुमार कहा गया है उनकी कविताओं में प्रकृति प्रेम देखने को मिलता है। प्रकृति के प्रति उनका प्रेम व लगाव अतुलनीय रहा है। वे हमेशा प्रकृति के साथ रहना चाहते हैं। उनकी प्रेरणा, उनका जीवन और उनकी रचना सब प्रकृति में ही निहित है। पंत कहतें हैं कि वे प्रकृति से दूर नहीं रह सकते।
छोड़ द्रुमों की मृदु छाया,
तोड़ प्रकृति से भी माया,
बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे
उलझा दूँ लोचन?
भूल अभी से इस जग को!
हम आज धीरे धीरे प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं, अपने भविष्य लिए मुसीबतें खड़ी करते जा रहे हैं। आज हम तरक्की