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हिंदी और मैथिली का वो कवि जिसने ठुकरा दिया था "राजकवि" का प्रस्ताव

[Kavishala Labs] जीवन, प्रेम और यौवन के कवि के नाम से प्रसिद्ध हिंदी और मैथिली कवि आरसी प्रसाद सिंह का हिंदी और मैथिली साहित्य में विशेष योगदान है. लेकिन ये विडम्बना ही है कि आज के समय में आरसी प्रसाद सिंह जैसे विद्वान कवि के बारे न तो आम लोग अच्छी तरह से जानते हैं और न ही साहित्य पर कार्य कर रही संस्थाएं उनकी रचनाओं को आम लोगो तक पहुँचाने हेतु कोई सार्थक कार्य कर रही है.  


मैथिली और हिन्दी के महाकवि आरसी प्रसाद सिंह (19 अगस्त 1911 - नवम्बर 1996) रूप, यौवन और प्रेम के कवि के रूप में विख्यात थे. बिहार के चार नक्षत्रों में वियोगी के साथ प्रभात और दिनकर के साथ आरसी प्रसाद सिंह जी का नाम जोड़ा जाता हैं. आरसी प्रसाद सिंह जी की काव्य प्रतिभा विलक्षण थी. उन्होंने प्रकृति, रूप, यौवन व प्रेम पर उत्कृष्ट और ह्रदय स्पर्शी रचनाएँ रची हैं.

 

आरसी प्रसाद सिंह हिन्दी और मैथिली भाषा के ऐसे प्रमुख हस्ताक्षर थे, जिनकी रचनाएं पाठक को बड़ी ही सहजता से आकर्षित कर लेती हैं. उन्होंने बालकाव्य, कथाकाव्य, महाकाव्य, गीतकाव्य, रेडियो रूपक एवं कहानियों समेत कई अन्य रचनाओं से हिन्दी एवं मैथिली साहित्य को समृद्ध किया. आरसी प्रसाद सिंह राजनीतिक रूप से भी जागरूक रहे हैं. उन्होंने अपनी लेखनी से नेताओं पर बेबाकी से कटाक्ष किया. 

 

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने आरसी सिंह के बारे में कहा था कि ‘सचमुच यह कवि मस्त है. सौंदर्य को देख लेने पर यह बिना कहे नहीं रह सकता..भाषा पर सवारी करता है. उपस्थापन में अबाध प्रवाह है. भाषा में सहज सरकाव’


आरसी सिंह के बारे में आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री कहतें है - “बिहार के चार तारों में वियोगी के साथ प्रभात और दिनकर के साथ आरसी को याद किया जाता है. किंतु आरसी का काव्य मर्म-मूल से प्रलम्ब डालियों और पल्लव-पत्र-पुष्पों तक जैसा प्राण-रस संचारित करता रहा है, वह अन्यत्र दुर्लभ है. किसी एक विषय, स्वर या कल्पना के कवि वह नहीं हैं. उनकी सम्वेदना जितनी विषयों से जुड़ी हुई है, उनकी अनुभूति जितनी वस्तुओं की छुअन से रोमांचित है, उनका स्वर जितने आरोहों, अवरोहों में अपना आलोक निखारता है, कम ही कवि उतने स्वरों से अपनी प्रतिभा के प्रसार के दावेदार हो सकते हैं”


आलोचक डॉ. नामवर सिंह ने आर सी सिंह जी की रचना ‘नन्ददास’ के बारे में लिखा है - “रोमांटिक कवियों में कुछ कवि आगे चलकर अध्यात्मवाद की ओर मुड़ गये और आरसी भी उनमें से एक हैं. निराला ने ‘तुलसीदास’ की जीवन कथा के माध्यम से देशकाल के शर से विंधकर ‘जागे हुए अशेष छविधर’ छायावादी कवि की छवि देखलाकर परम्परा का विकास किया तो कवि आरसी ने ‘नन्ददास’ के माध्यम से परम्परा का पुनरालेखन किया है ” 


आरसी प्रसाद सिंह कि कविताओं में जीवन के प्रति आस्था और विश्वास झलकता हैं. उनकी रचनाएं मानव जीवन-संघर्ष को गति प्रदान करते हुए उनकी अनुभूति और दृष्टि में आशा की ज्योती जलाती हैं. आरसी प्रसाद सिंह को पराधीनता पसंद नहीं थी. वे स्वयं पर विश्वास करते थे. उनके बारे में कहा जाता है कि "चालीस के दशक में जयपुर नरेश महाकवि आरसी सिंह जी को अपने यहाँ राजकवि के रूप में भी सम्मानित करना चाहते थे. इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु उन्होंने काफ़ी आग्रह, अनुनय-विनय किया, परंतु आरसी बाबू ने चारणवृत्ति तथा राजाश्रय को ठुकरा दिया.


हिंदी और मैथिली साहित्य में आरसी प्रसाद सिंह जी का योगदान अविस्मरणीय है. वे प्रसिद्ध कवि, कथाकार और एकांकीकार थे. छायावाद के तृतीय उत्थान के कवियों में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान था. साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था. पढ़िए उनकी कुछ कविताएं -


[१] (हिंदी कविता)

 

तब कौन मौन हो रहता है?

जब पानी सर से बहता है।


चुप रहना नहीं सुहाता है,

कुछ कहना ही पड़ जाता है।

व्यंग्यों के चुभते बाणों को

कब तक कोई भी सहता है?

जब पानी सर से बहता है।


अपना हम जिन्हें समझते हैं।

जब वही मदांध उलझते हैं,

फिर तो कहना पड़ जाता ही,

जो बात नहीं यों कहता है।

जब पानी सर से बहता है।


दुख कौन हमारा बाँटेगा

हर कोई उल्टे डाँटेगा।

अनचाहा संग निभाने में

किसका न मनोरथ ढहता है?

जब पानी सर से बहता है।


[२]

हमारा देश भारत है नदी गोदावरी-गंगा,

लिखा भूगोल पर युग ने हमारा चित्र बहुरंगा।


हमारे देश की माटी अनोखी मूर्ति वह गढ़ती,

धरा क्या स्वर्ग से भी जो गगन सोपान पर चढ़ती।


हमारे देश का पानी हमें वह शक्ति है देता,

भरत सा एक बालक भी पकड़ वनराज को लेता।

 

जहाँ हर साँस में फूले सुमन मन में महकते हैं,

जहां ऋतुराज के पंछी मधुर स्वर में चहकते हैं।


हमारे देश की धरती बनी है अन्नपूर्णा सी,

हमें अभिमान है इसका कि हम इस देश के वासी।


जहाँ हर सीप में मोती जवाहर लाल पलता है,

जहाँ हर खेत सोना कोयला हीरा उगलता है।


सिकंदर विश्व विजयी की जहाँ तलवार टूटी थी,

जहाँ चंगेज की खूनी रंगी तकदीर फू

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