हास्य रस की परिभाषा — किसी पदार्थ या व्यक्ति की असाधारण आकृति, वेशभूषा, चेष्टा आदि को देखकर हृदय में जो विनोद का भाव जाग्रत होता है, उसे हास्य कहा जाता है। किसी वस्तु या व्यक्ति का विचित्र (असंगत) आकार अजीव ढंग की वेशभूषा, बातचीत और ऊटपटांग आभूषणों आदि को देखकर हृदय में जो विनोदपूर्ण भाव उत्पन्न हो जाता है, उसे हास्य कहते हैं।
निम्न लिखित कुछ कविताएं हास्य रस के उधारण है :-
(i) "क्या है हेलो बस की टिकट"
बस में थी भीड़ और धक्के ही धक्के,
यात्री थे अनुभवी, और पक्के।
पर अपने बौड़म जी तो अंग्रेज़ी में
सफ़र कर रहे थे, धक्कों में विचर रहे थे ।
भीड़ कभी आगे ठेले, कभी पीछे धकेले ।
इस रेलमपेल और ठेलमठेल में,
आगे आ गए धकापेल में ।
और जैसे ही स्टाप पर उतरने लगे
कण्डक्टर बोला- ओ मेरे सगे ! टिकिट तो ले जा !
बौड़म जी बोले - चाट मत भेजा !
मैं बिना टिकिट के भला हूं,
सारे रास्ते तो पैदल ही चला हूं ।
— अशोक चक्रधर
व्याख्या : बस में भीड़ थी और धक्के लग रहे थे। मेरे बौड़म जी तो अंग्रेजी में सफ़र कर रहे थे। धक्कों की वजह से भीड़ उन्हें कभी आगे-कभी पीछे धकेल रही थी। इसी धक्कम पेल में वह आगे निकल गए। जैसे ही स्टॉप पर वह उतरने लगे, तभी कंडक्टर बोला - 'वह मेरे सगे, टिकट तो ले जा!' बौड़म जी बोले मेरा दिमाग मत खाओ, मैं टिकट नहीं लूंगा मैं तो सारे रास्ते पैदल ही चला हूं।
(ii) "गरीबी"
क्या बताएं आपसे हम हाथ मलते रह गए
गीत सूखे पर लिखे थे, बाढ़ में सब बह गए
भूख, महंगाई, ग़रीबी इश्क़ मुझसे कर रहीं थीं
एक होती तो निभाता, तीनों मुझपर मर रही थीं
मच्छर, खटमल और चूहे घर मेरे मेहमान थे
मैं भी भूखा और भूखे ये मेरे भगवान थे
रात को कुछ चोर आए, सोचकर चकरा गए
हर तरफ़ चूहे ही चूहे, देखकर घबरा गए
कुछ नहीं जब मिल सका तो भाव में बहने लगे
और चूहों की तरह ही दुम दबा भगने लगे
हमने तब लाईट जलाई, डायरी ले पिल पड़े
चार कविता, पांच मुक्तक, गीत दस हमने पढे
चोर क्या करते बेचारे उनको भी सुनने पड़े
रो रहे थे चोर सारे, भाव में बहने लगे
एक सौ का नोट देकर इस तरह कहने लगे
कवि है तू करुण-रस का, हम जो पहले जान जाते