
गौरव सोलंकी एक युवा कहानीकार और लेखक है! सामाजिक मुद्दों पर लेखक की आवाज उठाना सदियों से चला आ रहा है और यही एक अच्छे लेखक की पहचान होती है, गौरव इसी तरह के लेखक हैं! फिल्मो में लिखने के साथ साथ युवाओं के बीच इनकी लेखनी खूब प्रचलित है! आई आई टी से पढाई की और किस्से कहानियो की दुनिया में खो गए ! आइये पढ़ते है गौरव की कुछ कविताएं:
दिसंबर:
यह बहुत यक़ीन से न कहो कभी
कि कोई ताक़त है अंधेरे में
जब लगे भी, तब उठकर पानी का ग्लास लुढ़का दो खिड़की पर
कुछ बेमानी कहो
अंगूठे से कुचलने की कोशिश करो दीवार
रात को होने दो और चिल्लाओ कबूतरों पर, पुचकारो.
आकर पलंग पर लेटो घुटने मोड़कर.
लेटे रहो.
भूलने की कविताएं:
1.
यह कितनी अजीब सी बात है कि
यह वेटर तुम्हें नहीं पहचानता
और नहीं पूछता
कि कहां हैं वे
जिनके साथ आप आते थे उस अक्टूबर लगभग हर शाम
वह पूछता है कि पानी सादा या बिसलेरी
और तुम कहते हो – सादा, चक्रवर्ती साहब!
2.
मुझे फ़ोन फेंककर मारना चाहिए था दीवार पर
पर मैंने बाइक बेची अपनी
और शहर छोड़कर चला गया हमेशा के लिए
तुमने फिर फ़ोन किया बरसात में एक बार
हांफते हुए
कि वे मार डालेंगे तुम्हें
मैं घर बदल रहा था उस दिन, जो बदलता ही रहा मैं बरसों
और मैंने कहा कि ताला खोलकर करता हूं मैं फ़ोन
तीन चाबियां थीं और एक भी नहीं लग रही थी साली
कोई मार डालेगा तुम्हें,
ये मुझे रात को याद आया फिर
और मैंने फ़ोन मिलाया तुम्हें, जो मिला नहीं
फिर कभी भी नहीं
फिर मैं भूल गया तुम्हें धीरे-धीरे.
हमने इश्क़ किया
हमने इश्क़ कियाबंद कमरों में
फ़िजिक्स पढ़ते हुएऊंची छतों पर बैठकर
तारे देखते हुए,
रोटियां सेक रही मां के सामने बैठकर
चपर-चपर खाते हुए.
हमने नहीं रखी
बटुए में तस्वीरें,
किताबों में गुलाब,
अलमारियों में चिट्ठियां
हमारे कस्बे में नहीं थे
सिनेमाहॉल, पार्क और पब्लिक लाइब्रेरी
हम तय करके नहीं मिले,
हमने इश्क़ कियाजिसमें सब कुछ अनिश्चित था,