
वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है
माथे पे उस के चोट का गहरा निशान है
रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारों
आज वीरान अपना घर देखा, तो कई बार झाँक कर देखा
पाँव टूटे हुए नज़र आए, एक ठहरा हुआ खंडर देखा
बहुत क़रीब न आओ यक़ीं नहीं होगा
ये आरज़ू भी अगर कामयाब हो जाए
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीअ'त से उछालो यारों
एक गुड़िया की कई कठ-पुतलियों में जान है
आज शाइ'र ये तमाशा देख कर हैरान है
ख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिए
ये हमारे वक़्त की सब से सही पहचान है
गूँगे निकल पड़े हैं ज़बाँ की तलाश में
सरकार के ख़िलाफ़ ये साज़िश तो देखिए
बरसात आ गई तो दरकने लगी ज़मीन
सूखा मचा रही है ये बारिश तो देखिए
ये नज़र है कि कोई मौसम है
ये सबा है कि वबाल आया है
पक गई
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