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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र : आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रारम्भक

जागे मंगल-रूप सकल ब्रज-जन-रखवारे 

जागो नन्दानन्द -करन जसुदा के बारे 

जागे बलदेवानुज रोहिनि मात-दुलारे 

जागो श्री राधा के प्रानन तें प्यारे 

जागो कीरति-लोचन-सुखद भानु-मान-वर्द्धित-करन 

जागो गोपी-गो-गोप-प्रिय भक्त-सुखद असरन-सरन 

 -भारतेन्दु हरिश्चन्द्र


हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल के प्रारम्भ माने जाने वाले भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने समाज में होते गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण को ही अपनी लेखनी का आधार बनाया। उन्हें आधुनिक साहित्य का पितामाह भी माना जहा है जिनका जन्म 9 सितंबर 1850 को काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ था। उनके पिता गोपालचंद्र भी एक कवी थे और 'गिरधरदास'उपनाम से कविता लिखा करते थे। उनका बचपम कई संघर्षो से बिता जब वे केवल पांच वर्ष के थे तभी उनके माता की मृत्य हो गयी थे वही महज़ दस वर्ष की आयु में उनके पिता का भी देहांत हो गया था।  उन्होंने संस्कृत ,मराठी ,बंगाली मराठी गुजराती भाषा का खासा ज्ञान था। 

आपको बता उन्होंने महज़ पांच वर्ष की आयु में ही अपना पहला दोहा लिखा था जो निम्न था :


लै ब्योढ़ा ठाढ़े भए श्री अनिरुद्ध सुजान।

बाणासुर की सेन को हनन लगे भगवान॥


वो अठारह वर्ष के थे जब उन्होंने 'कविवचनसुधा' नामक पत्रिका निकाली थी जिसमें उस समय के बड़े-बड़े विद्वानों की रचनाओं को छापा जाता था । उन्हें बीस वर्ष की आयु में ऑनरेरी मैजिस्ट्रेट बनाया गया था जिसके बाद वे आधुनिक हिन्दी साहित्य के जनक के रूप मे प्रतिष्ठित हुए। बता दें उन्होंने 1868 में 'कविवचनसुधा', 1873 में 'हरिश्चन्द्र मैगजीन' और 1874 में स्त्री शिक्षा के लिए 'बाला बोधिनी' नामक पत्रिकाएं निकली थीं। 

अपने रचनाओं से राजभक्ति प्रकट करने और अपनी देशभक्ति की भावना के कारण भारतेन्दु को अंग्रेजो का कोपभाजन भी बनना पड़ा था। उनके भारतेन्दु नाम के पीछे भी एक तथ्य है ,बाबू हरिश्चन्द्र बाल्यकाल से ही परम उदार थे। उनकी यही उदारता लोगों को उनकी तरफ आकर्षित करती थी। अपना विशाल वैभव और धनराशि जो इन्हे अपने पूर्वजों से भी प्राप्त था उसे को विविध संस्थाओं को दिया हैऔर उनकी ऐसी विद्वता से प्रभावित होकर विद्वतजनों ने उन्हें 'भारतेन्दु' की उपाधि दे दी थी। वे लोगो की सहायता करना अपना परम कर्त्तव्य समझते थे |


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