
[Kavishala Labs]हिंदी काव्य साहित्य के भक्ति काल में कई विद्वान कवियों ने उत्कृष्ट रचनाएं रची है. इन रचनाओं में भक्ति, प्रेम, श्रृंगार, वियोग व संयोग आदि का ह्रदय स्पर्शी वर्णन हुआ है. भक्ति काल के विद्वान कवियों में से एक थे मलिक मुहम्मद जायसी. जायसी भक्ति काल के निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा के उत्कृष्ट कवि थे. उन्होंने मुख्य रूप से अवधी भाषा में काव्य रचनाएं रची हैं.
कवि जायसी का जन्म सन 1467 ई़ माना जाता है. कहा जाता है कि वे उत्तर प्रदेश के जायस नामक स्थान के रहनेवाले थे. उनके नाम में जायसी शब्द का प्रयोग, उनके उपनाम की भांति, प्रयोग हुआ है. इस संबंध में उनका स्वयं भी कहना है-
जायस नगर मोर अस्थानू।
नगरक नांव आदि उदयानू।
तहां देवस दस पहुने आएऊं।
भा वैराग बहुत सुख पाएऊं॥
उपरोक्त पंक्तियों में जायसी ने अपने जन्म स्थान का वर्णन किया है. इससे ज्ञात होता है कि उस नगर का प्राचीन नाम उदयान था, वहां वे एक पहुने जैसे दस दिनों के लिए आए थे, अर्थात जन्म लिया था. जायस नाम का एक नगर उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में आज भी वर्तमान है.
जायसी का रचना क्षेत्र मुख्य रूप से काव्य ही था. उनके २१ रचनाओं के उल्लेख मिलते हैं जिनमे पद्मावत, अखरावट, आख़िरी कलाम, कहरनामा, चित्ररेखा, कान्हावत आदि प्रमुख हैं. पर उनकी ख्याति का आधार पद्मावत ग्रंथ ही है. इसमें पद्मिनी की प्रेम-कथा का रोचक वर्णन हुआ है. रत्नसेन की पहली पत्नी नागमती के वियोग का अनूठा वर्णन है. इसकी भाषा अवधी है और इसकी रचना-शैली पर आदिकाल के जैन कवियों की दोहा चौपाई पद्धति का प्रभाव देखने को मिलता है.
साहित्येतिहासकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने मध्यकालीन कवियों में जायसी को एक प्रमुख कवि के रूप में स्थान दिया है. शिवकुमार मिश्र के अनुसार शुक्ल जी ने जब जायसी की काव्य प्रतिभा को देखा और जायसी ग्रंथावली का संपादन किया तो उन्हें जायसी की विलक्षण काव्य कौशल का ज्ञान हुआ. आचार्य रामचंद्र शुक्ल को जायसी की काव्य प्रतिभा मध्यकाल के दिग्गज कवि गोस्वामी तुलसीदास के स्तर की लगी. अतएव उन्होंने जायसी को तुलसीदास के समकक्ष माना है. शुक्ल जी के अनुसार जायसी का क्षेत्र तुलसी की अपेक्षा परिमित है, पर प्रेमवेदना अत्यंत गूढ़ है.
पढ़िए जायसी की कुछ रचनाएं -[१]
नागमती-व