भक्ति रस की परिभाषा — इसके अनुसार ईश्वर की भक्ति को मान्यता प्राप्त है, साथ ही किसी पूज्य व्यक्ति को भी भक्ति रस का आलंबन मान सकते हैं।
भक्तिकालीन कवियों ने ईश्वर की आराधना दास्य स्वभाव तथा साख्य भाव से किया था। इसमें प्रमुख थे तुलसीदास , सूरदास , कालिदास , मीराबाई आदि। इन्होंने आजीवन अपने ईश्वर की भक्ति नहीं छोड़ी। भक्ति के मार्ग पर चलकर उन्होंने अनेकों – अनेक कठिनाइयों का सामना किया। किंतु फिर भी भक्ति रस को आचार्यों ने मान्यता नहीं दी। आधुनिक विद्वानों ने इस पर शोध किया और भक्ति रस को स्वतंत्र रूप से स्थापित करने में सफलता हासिल की।
निम्न लिखित कुछ कविताएं भक्ति रस के उदाहरण है :-
(i) "दूलह श्री रघुनाथ बने दुलही सिय"
दूलह श्री रघुनाथ बने दुलही सिय सुंदर मंदिर माही।
गावति गीत सबै मिलि सुन्दरि वेद जुवा जुरि विप्र पढ़ाही।
राम को रूप निहारति जानकी कंगन के नग की परछाहीं।
यातै सबै सुधि भूलि गई कर टेकि रही पल टारत नाहीं।।
— तुलसीदास
व्याख्या : तुलसीदास जी ने राम के विवाह का वर्णन किया है। कि रामचंद्र जी दूल्हा बने हैं और सीता जी दुल्हन बनी है। विवाह जनक जी के महल में हो रहा है। महल में उत्सव का माहौल है। युवा ब्राह्मण वेद की रचनाएं गा रहे हैं। इस प्रकार का उच्चारण और विवाह के गीत से सारा महल गूंज रहा है। सीता जी ने एक नग वाला कंगन पहन रखा है। जिसमें श्री राम जी का प्रतिबिंब दिखाई पड़ रहा है। इसमें सीता जी बड़े ध्यान से रामजी का प्रतिबिंब देख रही है। एक पल के लिए भी उनकी नजर इस नग से दूर नहीं जाती है।
(ii) "जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे"
जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे ।
काको नाम पतित पावन जग, केहि अति दीन पियारे ।
जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे ।
कौनहुँ देव बड़ाइ विरद हित, हठि हठि अधम उधारे ।
जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे ।
खग मृग व्याध पषान विटप जड