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बहुमुखी प्रतिभा के धनि थे कवि चंदबरदाई


[Kavishala Labs] चंदबरदाई हिंदी साहित्य (आदिकाल) के महान कवि थे. उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के शौर्य वर्णन में हिंदी बृज भाषा के प्रसिद्द ग्रन्थ "पृथ्वीराजरासो" कि रचना की थी . कुछ विद्वान उन्हें हिंदी का पहला कवि और उनकी रचना पृथ्वीराज रासो को हिंदी की पहली रचना मानते है. पृथ्वीराज रासो हिंदी का सबसे बड़ा काव्य-ग्रंथ है. इस ग्रन्थ में 10,000 से अधिक छंद हैं. चंदबरदाई ने इस ग्रंथ में उत्तर भारतीय क्षत्रिय समाज व उनकी परंपराओं के सन्दर्भ में विस्तार से वर्णन किया है. इस हेतु "पृथ्वीराजरासो" का ऐतिहासिक महत्व भी है.


चंदबरदाई राव ( 30 September 1149 - 1200) का जन्म लाहौर में हुआ था. वे महाराजा पृथ्वीराज चौहान के मित्र व राजकवि थे चंदबरदाई अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक पृथ्वीराज चौहान के साथ ही रहे. वे काव्य कला व युद्ध कला दोनों में कुशल थे. अतः युद्ध के समय भी वे पृथ्वीराज चौहान के साथ ही रहते थे. 


चंदवरदाई के काव्य ग्रन्थ "पृथ्वीराजरासो" की भाषा को भाषा-शास्त्रियों ने पिंगल कहा है, पिंगल राजस्थान में ब्रजभाषा का पर्याय है. "पृथ्वीराजरासो" में पृथ्वीराज के शौर्य व युद्ध व प्रेम-प्रसंगों का वर्णन है . इस ग्रन्थ में मुख्य रूप से वीर रस और शृंगार रस ही दृष्टिगोचर होते है.


मुहम्मद गोरी से प्रतिशोध लेने में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका : कहते है जब छल से मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना उन्हें अन्धा कर दिया था. उसके बाद मुहम्मद गौरी ने चन्द्रवरदाई को पृथ्वीराज चौहान से उनकी आखिरी इच्छा पूछने को कहा. तभी पृथ्वीराज चौहान और चंदबरदाई ने मुहम्मद गौरी से प्रतिशोध लेने की योजना बना ली. पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाना जानते थे. ये बात चंदबरदाई ने मोहम्मद गोरी बताई और उन्होंने इस कला प्रदर्शन के लिए मुहम्मद से मंजूरी लेली.


जिस स्थान पर पृथ्वीराज चौहान अपनी कला का प्रदर्शन करने वाले थे वहीं पर मौहम्मद गौरी भी मौजूद था. गौरी को मारने की योजना चन्द्रवरदाई के साथ मिलकर पृथ्वीराज चौहान ने पहली ही बना ली थी. जैसे ही प्रदर्शन शुरू होने वाला था उसी समय चन्द्रवरदाई ने एक दोहा पढ़ा -


'चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण,

ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान'


ये दोहा चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को संकेत देने के लिए कहा था. इस दोहे को सुनकर पृथ्वीराज चौहान को मुहम्मद गौरी की दूरी व स्थिति पता चल गयी. फिर जैसे ही मुहम्मद गोरी ने प्रदर्शन शुरू करने का आदेश दिया उसी समय पृथ्वीराज चौहान ने गोरी को अपने शब्दभेदी बाण के द्वारा मार डाला. मोहम्मद गोरी को मारने के बाद पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई ने एक दूसरे के प्राण ले लिए. .


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