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बाबूराव विष्णु पराडकर | हिंदी पत्रकारिता के भीष्म पितामह


ब कोई नया संसार में प्रवेश करने का साहस करता है तो यह साधारण नियम हो गया है कि प्रथम वह अपना उद्देश्य बतलाए अर्थात उसको दिखलाने का यत्न करे कि वह किसी अभाव को पूर्ण करने को आया है । सारांश यह है कि प्रत्येक नए पत्र को क्षमाप्रार्थी के रुप में आना पड़ता है । हम इस परम्परा को तोड़ने की धृष्टता नहीं कर सकते और आज कृष्ण जयंती के शुभ अवसर पर सर्वसाधारण के सम्मुख उपस्थित होते हुए हमको जो कुछ प्रार्थना करना है, सो करेंगे । प्रथम तो हमने अपना नाम क्यों रखा, सो बतलाना चाहिए । हमारा पत्र दैनिक है । प्रत्येक दिन इसका प्रकाशन होगा । संसारभर के नए से नए समाचार इसमें रहेंगे । दिन-प्रतिदिन संसार की बदलती हुई दशा में नए-नए विचार उपस्थित करने की आवश्यकता होगी । हम इस बात का साहस नहीं कर सकते कि हम सर्वकाल, सर्वदेश, सर्वावस्था के लिए जो उचित, युक्त और सत्य होगा, वही सर्वदा कहेंगे । हमको रोज-रोज अपना मत तत्काल स्थिर करके बड़ी-छोटी सब प्रकार की समस्याओं को समयानुसार हल करना होगा । जिस क्षण जैसी आवश्यकता पड़ेगी, उसी की पूर्ति का उपाय सोचना और प्रचार करना होगा। अतएव हम एक ही रोज की जिम्मेदारी प्रत्येक अंक में ले सकते हैं । वह जिम्मेदारी प्रत्येक दिन केवल आज की होगी, इस कारण इस पत्र का नाम आज है ।

 

दूसरा प्रश्न यह है कि हम जन्म क्यों ले रहे हैं ? क्या और पत्र नहीं है ? क्या हम उनसे प्रतिद्वंद्विता के भाव से आगे बढ़ रहे हैं ? इसका उत्तर हमें यह देना है कि हमारा भाव कदापि ऐसा नहीं है । हम अन्य पत्रों को हटाना नहीं चाहते । हम उनके समकक्ष बैठना चाहते हैं । हम नम्रतापूर्वक आशा करते हैं कि देशोन्नति के शुभ कार्य में हमारा उनका सहयोग होगा । वे हमारी और हम उनकी त्रुटियों की पूर्ति करेंगे और हम सब साथ चलकर देश की स्वतंत्रता के युद्ध में विजय पाने का यत्न करेंगे ।

 

तीसरी बात यह है कि हमारे विशेष उद्देश्य क्या हैं ? हमारे संचालकों की ओर से प्रकाशित कर्त्तव्य सूचना पत्र में लिखा है कि भारत के गौरव की वृद्धि और उसकी राजनीतिक उन्नति आज का विशेष लक्ष्य होगा । भारत का राजनीतिक आकाश इस समय घनघोर घटाओं से आच्छादित है । हम किधर जा रहे हैं इसका पता नहीं लग रहा है । भिन्न-भिन्न लोग अपनी बुद्धि और शक्ति के अनुसार भिन्न-भन्न मार्गों पर हमें ले जा रहै हैं । साधारण स्त्री-पुरुष जो अपने प्रतिदिन के कर्त्तव्य पालन में लगे हैं और जिनको राजनीति आदि गूढ़ विशयों पर विचार करने का अवकाश बहुत नहीं मिलता, वे किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो गऐ हैं । वे नहीं समझ रहे हैं कि क्या हो रहा है और क्या होगा ? ऐसी अवस्था में हमको यह आशा है कि दिन-प्रतिदिन की समस्याओं को हमारा पत्र स्पष्ट रुप से दर्शाएगा और उन सबको आगे चलने का मार्ग दिखलाएगा । वे आज सशंक साधारण तौर से स्वराष्ट्र दल के हैं । स्वराष्ट्र दल से हमारा मतवब नहीं कि जो कांग्रेस कहेगी, इसका हम अवश्य ही पालन करेंगे । संभव है कि कांग्रेस कहेगी, उसका हम अवश्य ही पालन करेंगे । संभव है कि कांग्रेस आज नहीं तो कल अधिकतर ऐसे सज्जनों से भर जाए जो राष्ट्रीयता के पक्षपाती नहीं हैं । उस रोज हमारा साथ कांग्रेस का नहीं रहेगा । हमारा उद्देश्य अपने देश के लिए हर प्रकार से स्वतंत्रता पाने का है । हम हर बात में स्वतंत्र होना चाहते हैं । हमारा लक्ष्य यह है कि हम अपने देश का गौरव बढा़एं । हम अपने देशवासियों में स्वाभिमान का संचार करें । उनको ऐसा बनाएं कि भारतीय होने का उन्हें अभिमान हो, संकोच नहीं । यह स्वाभिमान स्वतंत्रता देवी की उपासना करने से मिलता है । जब इसमें आत्मगौरव होगा तो अन्य भी हमको आदर और सम्मान की दृष्टि से देखेंगे ।

 

जब हमारा पद, हमारा घर ऊंचा होगा तो बाह हमको कोई निरादर करने का साहस न करेगा । इस दक्षिण और पूर्वी अफ्रीका में भारतवासियों की दुर्दशा का दुःसमाचार रोज न सुनना पड़ेगा । अतः हम अपने देश का गौरव अपनी आंखों में और दूसरों की आंखों में बढा़ते हुए स्वतंत्रता प्राप्त करने का पूरे तौर से यत्न करेंगे । यह तो राजनीति के संबंध में हमारा सिद्धांत हुआ । राजनैतिक सुधार, नई परिषदों आदि के संबंध का गौरव बढ़े । भारत और भारतीयता का नाम संसार में आदर के साथ लिया जाए । जिन-जिन कार्यों से ऐसा होगा, उसके हम पक्षपाती हैं । जिससे इसके विपरीत होगा, उसके हम विपक्षी हैं । साथ ही यह कहना अत्यावश्यक है- क्योंकि इसी से समझ में फरक पड़ जाता है कि हम जाति-जाति में देश में किसी प्रकार का झगड़ा नहीं चाहते, न हम व्यक्ति-व्यक्ति में वैमनस्य ही पसंद करते हैं । यथासंभव हम यह यत्न करेंगे कि व्यक्ति विशेषों पर कटाक्ष न हो, केवल उनके विचारों की ही समीक्षा-परीक्षा हो । हमारा यह यत्न रहेगा कि किसी के चरित्र को और उसके रहस्य जीवन की बातों को प्रकाशित करके उसका अनादर न किया जाए । स्वामी विवेकानंद के वाक्य से हम सहमत हैं कि किसी व्यक्ति विशेष के रहस्य जीवन का निपटारा उसका स्वामी परमेश्वर और वह स्वयं कर ले । हमको उसके सामाजिक जीवन से ही केवल मतलब है । अतः हमारा यह विशेष प्रयत्न रहेगा कि किसी व्यक्ति के ऊपर कटु वाक्य का प्रयोग न हो और न किसी जाति विशेष से द्वेष फैलाया जाए । हम अपना सम्भालने उठे हैं दूसरों का ढहाने नहीं । हां, यदि अपना घर ठीक करने में हमारी कोई बाधा करे तो उसके प्रतिकार का यत्न हमें अवश्य करना होगा ।

 

पर राष्ट्र का एकमात्र अंग राजनीति ही नहीं है । पाठकों का प्रश्न यह अवश्य होगा कि आध्यात्मिक, आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक विषयों में हमारी नीति क्या है । इसका उत्तर देना आवश्यक है । शिक्षा, जिससे मानसिक उन्नति होगी, वाणिज्य, व्यवसाय, कृषि आदि इस विषयों की तफसील न देकर इतना कहना पर्याप्त होगा कि हम उचित देशकाल अनुकूल शिक्षा के नितांत पक्षपाती हैं । हम चाहते हैं कि देश में सर्वव्यापक और उपयुक्त शिक्षा हो जिससे लोग अपने कर्त्तव्य और अपने अधिकार को पूरी तौर से समझें, कर्त्तव्य पालन में अपने अधिकार न भूलें और अधिकारों पर अड़े रहते हुए भी अपने कर्त्तव्य से कदापि विमुख न हों । हमारे पत्र में शिक्षा संबंधी सब प्रकार के विचारों के लिए स्थान सदा खुला रहेगा और उच्च, माध्यमिक और प्रारंभिक शिक्षा के प्रस्ताव हम सहर्ष छापेंगे । साथ ही साथ हमारा यह उद्देश्य रहेगा कि शिक्षा ऐसी दी जाए, जिससे शिक्षित लोगों को उचित रोजगार मिलने में कठिनाई न हो और वे अपना जीवन आनंद और गौरव के साथ काट सकें । व्यापार, व्यवस्था, कृषि आदि की उन्नति पर यह पत्र सदा जोर देगा और इनको बढ़ाने के उपायों को बराबर बतलाने का यत्न करेगा क्योंकि हम यह मानते हैं कि बिना धन के, बिना धन-धान्य से पूरा करना है और प्रत्येक नर-नारी को पर्याप्त अस्त्र-वस्त्र और उचित आमोद-प्रमोद की सामग्री देन

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