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अगस्त क्रांति दिवस : साहित्यकरों ने दी क्रांति की चिंगारी को हवा

भारत की आज़ादी में क्रांतिकारियों के द्वारा किया गया बलिदान अविस्मरणीय है. इन क्रांतिकारियों के साहस को दोगुना करने में साहित्यकारों ने विशेष भूमिका निभाई है. जब महात्मा गाँधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरुआत की तो उस समय पूरे देश में क्रांति की एक लहर दौड़ गयी और इस लहर को हवा दी साहित्यकारों की रचनाओं ने.  


भारत छोड़ो आन्दोलन में द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 9 अगस्त 1942 को आरम्भ किया गया था. यह एक आन्दोलन था जिसका लक्ष्य भारत से ब्रितानी साम्राज्य को समाप्त करना था. यह आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन में शुरू किया गया था. यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विश्वविख्यात काकोरी काण्ड के ठीक सत्रह साल बाद 9 अगस्त सन 1942 को गांधीजी के आह्वान पर समूचे देश में एक साथ आरम्भ हुआ.यह भारत को तुरन्त आजाद करने के लिये अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक सविनय अवज्ञा आन्दोलन था.


भारत छोड़ो आंदोलन सही मायने में एक जनांदोलन था जिसमें लाखों आम हिंदुस्तानी शामिल थे. इस आंदोलन ने युवाओं को बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया. इस आंदोलन के बाद अंग्रेजो को अपनी हार दिखने लगी. जहाँ एक महात्मा गाँधी के आह्वान पर पूरा देश एक हो उठा था वही साहित्यकारों की रचनाओं और कविताओं ने क्रांतिकारियों के अंदर नया जोश भर दिया था. प्रस्तुत है कुछ ऐसी कविताएं जो क्रांतिकारियों के लिए साहस का मंत्र बनी.


सुभद्रा कुमारी चौहान की ‘झांसी की रानी’ कविता को कौन भूल सकता है, जिसने अंग्रेजों की चूलें हिला कर रख दी। वीर सैनिकों में देशप्रेम का अगाध संचार कर जोश भरने वाली अनूठी कृति आज भी प्रासंगिक है :


सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकृटी तानी थी,

बूढे़ भारत में भी आई, फिर से नई जवानी थी,

गुमी हुई आजादी की, कीमत सबने पहिचानी थी,

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,

चमक उठी सन् सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी,

बुंदेले हरबोलों क

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