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अद्भुत रस : आश्चर्य एवम् विस्मय की अभिव्यक्ति के भाव को व्यक्त करने वाला रस

अद्भुत रस — जब किसी व्यक्ति के मन में अद्भुत या आश्चर्य वस्तुओं को देखकर विस्मय, आश्चर्य, आदि का भाव उत्पन्न होता है, तो वहां अद्भुत रस प्रकट होता है। इसके अंदर रोमांच, आंसू का आना, कापना, गदगद होना, आंखें फाड़ कर देखना, आदि के भाव व्यक्त होते हैं। या फिर यह कह सकते हैं कि, जहां चकित कर देने के दृश्य के चित्रण से जो रस उत्पन्न होता है उसे अद्भुत रस कहते हैं। जिसमें दृष्टि और मस्तिष्क क्षणिक भर के लिए स्तब्द हो जाता है और उसके आकार, आदि को विस्मय भाव से देखता रह जाता है।

निम्न लिखित कुछ कविताएं अद्भुत रस के उधारण है :-

(i) "लक्ष्मी थी या दुर्गा थी"

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,

देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,

नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,

सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।

महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।  

— सुभद्रा कुमारी चौहान  

व्याख्या : प्रस्तुत पंक्तियां वीरांगना लक्ष्मी बाई के शौर्य पराक्रम से उत्पन्न विस्मय भाव को प्रदर्शित करता है। लक्ष्मी बाई ने स्वयं स्त्री होकर अपने राज्य की रक्षा के लिए अग्रणी भूमिका निभाई। उन्होंने युद्ध भूमि में अपने प्राण गवाया किंतु अंग्रेजों और आक्रमणकारियों के आगे अपने शस्त्र नहीं डालें। उनके इस उत्साह और पराक्रम ने अद्भुत चमत्कार प्रस्तुत किया। इस भाव को देखकर वह साक्षात लक्ष्मी या दुर्गा की अवतार प्रतीत होती है जिसे देखकर मराठे भी गर्व की अनुभूति करते हैं।

(ii) "विचार आते हैं"

विचार आते हैं

लिखते समय नहीं

बोझ ढोते वक़्त पीठ पर

सिर पर उठाते समय भार

परिश्रम करते समय

चांद उगता है व

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