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आज की हिन्दी युवा कविता : एक नज़र में - निशान्त जैन

सभ्यता की शुरुआत से, साहित्य की आदिम विधाओं में कहानी और नाटक के साथ गीत और कविताएँ भी शामिल रहे हैं। मानव सभ्यता की शुरुआत से, इंसान का लय और गीतों से ख़ास रिश्ता रहा है। कविता इंसान को हमेशा से आकर्षित करती रही है और इंसान ने कविता में ज़िंदगी के सबसे ख़ूबसूरत पलों को भरपूर जिया है!

साहित्य और कविता आपकी ज़िंदगी को बेहतर और संवेदना से भरपूर बनाते हैं। आप चीज़ों को ज़्यादा गहराई और शिद्दत से महसूस कर पाते हैं। अच्छा साहित्य आपकी सोच के दायरे खोलता है, आपको संवेदनशील और परिपक्व बनाता है और आपको ख़ुशी से सराबोर तो करता ही है!

‘कविता क्या है?’ निबंध में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है, “कविता मनोवेगों को उत्तेजित करने का एक उत्तम साधन है। कविता हमारे मनोभावों को उच्छ्वसित करके हमारे जीवन में एक नया जीव डाल देती है। हमें जान पड़ता है कि हमारा जीवन कई गुना अधिक होकर समस्त संसार में व्याप्त हो गया है।” इस तरह आचार्य शुक्ल कह रहे हैं कि कविता हममें नए जीवन का संचार करती है और हमें ज़िंदादिल बनाती है।

उधर अंग्रेज़ी कवि विलियम वर्ड्स्वर्थ ने कविता की परिभाषा कुछ इस तरह दी है, “कविता प्रबल भावनाओं का तीव्र प्रवाह है; यह सुकून के पलों के उत्पन्न होने वाले अहसासों से प्रेरित होता है।

इस तरह उन्होंने कविता की रचना प्रक्रिया को स्पष्ट करने की कोशिश की है!

अगर हिन्दी कविता की बात करें, तो हिन्दी कविता का इतिहास, हिन्दी भाषा की तरह ही, लगभग एक हज़ार साल पुराना है। हिन्दी साहित्य के आदि काल में सृजित काव्य को सिद्ध, जैन और नाथ साहित्य के रूप में विभक्त किया गया है। इसी दौर में, अमीर खुसरो ने आम भाषा में अपनी क़लम चलाई। खुसरो की भाषा और कविताएँ आज भी उतनी ही अपनी सी लगती हैं।

भक्ति काल में कबीर, जायसी, सूर, तुलसी, मीरा, रसखान, रहीम ने बेहतरीन काव्य साहित्य का सृजन किया। यह काव्य, ज़्यादातर हिन्दी की आम भाषा और स्थानीय बोलियों में लिखा जा रहा था; जैसे ब्रज, अवधी और अन्य स्थानीय बोलियों-भाषाओं का मिश्रण।

आगे बढ़ें, तो रीति काल में, बिहारी, भूषण, मतिराम, पद्माकर अपनी ओर ध्यान खींचते हैं। ये कवि दरबारी अन्दाज़ में सौंदर्य पर केंद्रित काव्य सृजन कर रहे थे। इस दौर के बाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र के उदय के साथ, हिन्दी साहित्य में खड़ी बोली के मानक हिन्दी के रूप में स्वीकृत होने की शुरुआत हुई। 

आधुनिक हिन्दी कविता की यात्रा भारतेंदु युग और द्विवेदी युग से शुरू होकर, छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई कविता से होते हुए, समकालीन कविता तक पहुँची। इस दौरान, छायावाद के चार स्तम्भों; प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी ने सूक्ष्म सौंदर्य की अद्भुत व्यंजना करते हुए, कविता को नए ढंग से परिभाषित किया, तो इसी दौर में दिनकर, मैथिलीशरण गुप्त, सुभद्राकुमारी चौहान जैसे कवि राष्ट्रीय चेतना को अपनी कविताओं में मुखरित कर रहे थे। 

आगे के दौर में, प्रगतिवादी, प्रयोगवादी और नई कविता के कवियों; त्रिलोचन, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल, अज्ञेय, मुक्तिबोध, भवानीप्रसाद मिश्र, धूमिल, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, रघुपति सहाय ‘फ़िराक़ गोरखपुरी’ ने विद्रोह और जीवन के यथार्थ को स्वर दिया। इस पूरे दौर में, अलग-अलग काल खंडों में, हरिवंश राय बच्चन, गोपालदास ‘नीरज’, बालकवि बैरागी, शिवमंगल सिंह सुमन, दुष्यंत कुमार के लयात्मक गीत और ग़ज़लें अपना आकर्षण बनाए हुए थीं।

हिन्दी कविता का ये कारवाँ बढ़ते- बढ़ते आज यहाँ तक पहुँचा है। इस लेख में हम, आज के दौर के, युवा कवियों की कविताओं और गीतों व उनकी प्रवृत्तियों और विशेषताओं पर चर्चा करेंगे। ऐसे कवि, जिनकी कविताओं ने अपने समय को अपनी कविताओं में स्वर दिया है और जिनकी कविताएँ आम पाठकों, युवाओं और कविता-प्रेमियों द्वारा पसंद की जा रही हैं।

आज की युवा कविता में, गीत चतुर्वेदी, सुशोभित, अविनाश मिश्र, विहाग वैभव, वीरू सोनकर, अदनान कफ़ील दरवेश, अनुज लुगुन, सुधांशु फिरदौस, अरुणाभ सौरभ, जितेंद्र श्रीवास्तव, बाबुषा कोहली, व्योमेश शुक्ल, मनोज कुमार झा, प्रांजल धर, जसिंता केरकेट्टा, डॉ जितेंद्र कुमार सोनी आदि ने इन दिनों सक्रिय हस्तक्षेप किया है। 

उधर, हिन्दी गीतों और ग़ज़लों की सरस और लोकप्रिय परम्परा में, डॉ कुमार विश्वास, चिराग़ जैन, आलोक श्रीवास्तव, डॉ हरिओम, निकुंज शर्मा आदि ने तो सिनेमा के गीतकारों में प्रसून जोशी, मनोज मुंतशिर, इरशाद कामिल, स्वानन्द किरकिरे, नीलेश मिश्रा, राज शेखर आदि ने युवा पीढ़ी को कविता और गीतों की ओर आकर्षित करने में बड़ी भूमिका निभाई है।

आज के दौर में, युवा कवियों द्वारा लिखी जा रही ताज़ा कविताओं में जहाँ एक ओर ताज़गी है, वहीं सच को सच कह सकने की हिम्मत भी। ये कविताएँ अपने दौर के यथार्थ को खुलकर कहने में नहीं हिचकिचातीं, वहीं इनके सौंदर्य के प्रतिमान भी ज़्यादा सहज और यथार्थ के नज़दीक हैं। अपने आस-पास घट रही साधारण घटनाओं और उनके साधारण पात्रों व वस्तुओं के प्रति इन कविताओं का विशेष आग्रह है। ये कवि अपने माहौल और देश-दुनिया में होने वाली हल-चल के प्रति बेपरवाह नहीं, बल्कि सजग हैं।

आइए, समकालीन युवा काव्य-साहित्य के कुछ दिलचस्प उदाहरणों और उनकी विशेषताओं पर नज़र डालें।

नए दौर में गीत चतुर्वेदी ने अपनी कविताओं से सार्थक हस्तक्षेप किया है। उनके कविता संग्रह ‘न्यूनतम मैं’ और ‘ख़ुशियों के गुप्तचर’ हाल के दिनों में चर्चाओं में रहे हैं। वह लिखते हैं:-

और देखिए,

जाओ मैंने तुम्हें माफ किया

आ जाओ कि मैंने तुम्हें माफ किया

साधारण चीज़ों में सौंदर्यबोध का एक उदाहरण और देखिए,

तुम्हारे बिना,

उतना ही अकेला हूँ,

जितना एक पैर की चप्पल

अदनान कफ़ील दरवेश अपनी कविता ‘पुन्नू मिस्त्री’ में अपनी बालकनी से दिखने वाले पुन्नू मिस्त्री की अपनी ज़िं

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