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बिहार राज्य के विद्वान साहित्यकारों का हिंदी साहित्य में योगदान स्वर्ण अक्षरों में अंकित है...

[Kavishala Labs] बिहार राज्य प्राचीन काल से ही ज्ञान, अध्यात्म, संस्कृति और साहित्य में समृद्ध रहा है. यहाँ की मिट्टी में कौटिल्य, मनु, याज्ञबल्कय, मण्डन मिश्र, भारती, मैत्रेयी, कात्यानी, अशोक, बिन्कुसार, बिम्बिसार, से लेकर बाबू कुंवर सिंह,रामधारी दिनकर , नार्गाजून आदि कई अन्य विद्वानों ने जन्म लेकर अपने ज्ञान व साहित्य से भारत का नाम विश्व पटल पर रोशन किया है. हिंदी साहित्य को नयी दिशा देने में बिहार का अतुलनीय योगदान रहा है.

हिंदी के विशिष्ट शैलीकार राजा राधिकारमरण प्रसाद सिंह, आचार्य शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपुरी और फणीश्वरनाथ रेणु व राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर बिहार से थे। इनकी रचनाशीलता ने पूरे देश में हिंदी का मान बढ़ाया। हिंदी के प्रथम खड़ी बोली के लेखक महेश नारायण भी बिहार से थे. 


हिंदी साहित्य को नया आयाम देने वाले साहित्यकार -

महेश नारायण :- महेश नारायण हिंदी भाषा के श्रेष्ठ लेखक व कवि थे . उन्होंने सन 1881 में खड़ी बोली हिंदी में 'स्वप्न' नामक एक कविता की रचना की जिसका प्रकाशन पटना से प्रकाशित 'बिहार बंधु' में 13 अक्टूबर 1881 को हुआ था यह खड़ी बोली हिंदी में रचित अपने समय की सबसे लम्बी कविता तो है ही, साथ ही हिन्दी भाषा के पूरे इतिहास में मुक्तछन्द की पहली कविता है। प्रस्तुत है उनकी कविता 'स्वप्न' से कुछ अंश -


थी अन्धेरी रात और सुन्सान था,

और फैला दूर तक मैदान था;

जंगल भी वहाँ था,

जनवर का गुमाँ था,

बादल था गरजता,

बिजली थी चमकती,

वो बिजली की चमक से रौशनी होती भयंकर सी।

ईश्वर के जमाल का नमूना वाँ था,

ईश्वर के कमाल का ख़ज़ाना वाँ था।

दरख़तों पर जो बिजली की चमक पड़ती अन्धेरे मे,

डालों के तले,

पत्तों में हो कर,

तो यह मालूम होता जैसे हो वह सख़्त घेरे में।


राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर: रामधारी सिंह दिनका का जन्म 24 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गाँव में हुआ था. दिनकर हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे. वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में जाने जाते हैं. 'दिनकर' की छवि स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुई और स्वतन्त्रता के बाद वो 'राष्ट्रकवि' के रूप में जाने गये. दिनकर छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे. एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है. प्रस्तुत है उनकी कुछ कविताओं के अंश-


(१)

कृष्ण की चेतावनी 


‘दो न्याय अगर तो आधा दो,

पर, इसमें भी यदि बाधा हो,

तो दे दो केवल पाँच ग्राम,

रक्खो अपनी धरती तमाम।

हम वहीं खुशी से खायेंगे,

परिजन पर असि न उठायेंगे!

दुर्योधन वह भी दे ना सका,

आशीष समाज की ले न सका,

उलटे, हरि को बाँधने चला,

जो था असाध्य, साधने चला।

जब नाश मनुज पर छाता है,

पहले विवेक मर जाता है।


(२)

चांद का कुर्ता


हठ कर बैठा चाँद एक दिन, माता से यह बोला,

‘‘सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला।


सनसन चलती हवा रात भर, जाड़े से मरता हूँ,

ठिठुर-ठिठुरकर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ।


आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का,

न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही कोई भाड़े का।’’


बच्चे की सुन बात कहा माता ने, ‘‘अरे सलोने!

कुशल करें भगवान, लगें मत तुझको जादू-टोने।


जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ,

एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ।


कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा,

बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा।


घटता-बढ़ता रोज किसी दिन ऐसा भी करता है,

नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है।


अब तू ही ये बता, नाप तेरा किस रोज़ लिवाएँ,

सी दें एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आए?’’


(३)

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है 

सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी,

मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;

दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ।

 

जनता ? हाँ, मिट्टी की अबोध मूरतें वही,

जाड़े-पाले की कसक सदा सहनेवाली,

जब अँग-अँग में लगे साँप हो चूस रहे

तब भी न कभी मुँह खोल दर्द कहनेवाली ।


जनता ? हाँ, लम्बी-बडी जीभ की वही कसम,

"जनता,सचमुच ही, बडी वेदना सहती है।"

"सो ठीक, मगर, आखिर, इस पर जनमत क्या है ?"

'है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है ?"


राजकमल चौधरी: राजकमल चौधरी का जन्म दिसंबर 1921 को उत्तरी बिहार में मुरलीगंज के समीपवर्ती गाँव रामपुर हवेली में हुआ था. राजकमल हिन्दी और मैथिली के प्रसिद्ध कवि एवं कहानीकार थे. हिन्दी में उनकी संपूर्ण कविताएँ भी प्रकाशित हो चुकी हैं. प्रस्तुत है उनकी कुछ कविताओं के अंश-


(१)

अमृता शेरगिल के लिए

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