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जादुई जायिका मेरी नानी का - दिव्यांश पोद्दार

किसी भी वेब सीरीज ,फिल्म या कोई भी डॉक्यूमेंट्री जो बनती है उसके पीछे जो सबसे महत्वपूर्ण चीज़ होती है वो है स्क्रिप्ट वास्तव में हर चीज़ लिखी हुई चीज़ों से ही शुरू होती है। इसलिए हमे लगता है कि हमे एक मौलिक रूप से काम करना चाहिए और जब मौलिकता की बात हो तो किताब सबसे बड़ा सहारा है।

-सुशील पोद्दार


शोर में शोर मचाना है या हकीकत को जानना है इन दो विकल्पों में जरुरी है सही विकल्प का चयन और सही विकल्प के चयन के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण हैं किताबें , क्यूंकि किताब ही एक ऐसा माध्यम हैं जो सत्य उजागर कर सकता है जरुरी है किताबे पढ़ना इसके साथ-साथ उसके पीछे की कहानियों को जानना। इसी उद्देश्य को साथ लिए कविशाला ने शुरू किया है नया कार्यक्रम टॉकिंग बुक्स(Talking Books) यानी किताबें बोलती हैं। इस नई शुरुआत के पहले कार्यक्रम में कविशाला के साथ जुड़े IRS सुशील पोद्दार और निधि पोद्दार जिन्होंने मिल कर किताब लिखी है जिसका नाम है BLAZE - A SON’S TRIAL BY FIRE ये किताब उनके पुत्र दिव्यांश के जीवन की वास्तविक कहानी पर आधारित है। अंग्रेजी में लिखी इस किताब में कई प्रेरणादायक कविताएं लिखी गई हैं जो जीवन में आए उतार-चढाव और संघर्ष को दर्शाती हैं । संस्थापक अंकुर मिश्रा द्वारा IRS सुशील पोद्दार और निधि  पोद्दार के साथ किए इस किताब के ऊपर विस्तार चर्चा को पढ़ते हैं।


सर दिव्यांश की कहानी को लोगों तक पहुँचाने के लिए आपने किताब का ही माध्यम क्यों चुना ये सवाल इसलिए क्यूंकि आज के दौर में जहाँ विडिओ फॉर्मेटिंग या वेब सीरीज हैं जिसके माध्यम से भी आप दिव्यांश की इस प्रेरणादायक कहानी को लोगो तक पहुंचा सकते थे ऐसे में इन सबके ऊपर किताबों को चुनने का कारण ?

 

सुशील पोद्दार : ये सवाल बिल्कुल लाज़्मी है कि विडिओ फॉर्मेटिंग का जरिया न लेकर किताबों को क्यों चुना वास्तव में इसका आधार दिव्यांश ही था। दिव्यांश खुद लिखने-पढ़ने वाला व्यक्ति था जीवन में संघर्ष करते हुए जितनी भी चुनौतियां उसके जीवन में आई उनको लिखना शुरू किया कविताएं और लेख लिखें कई ऐसी बातों को उसने लिखा जो हम आम लोगो की जिंदगी से जुड़ी थी मैं मानता हूँ कहानियों को किताब के रूप में ही लिखी जाए इस बात का संकेत दिव्यांश ने ही दिया था। एक अभिवाक होने के नाते हमे ये लगता था उसके इस भाव और मंशा का हमे सम्मान करना चाहिए तो यही कारण था कि हमने किताब के रूप में कहानी को लिखा। किताब के रूप में कहानी लिखना एक संयोग की तरह था आप कह सकते हैं कि हम एक आकस्मिक लेखक हैं। दिव्यांश ने कई ऐसी कहानियां लिखी जो हमे लगा मैं मानता हूँ किसी भी वेब सीरीज ,फिल्म या कोई भी डॉक्यूमेंट्री जो बनती है उसके पीछे जो सबसे महत्वपूर्ण चीज़ होती है वो है स्क्रिप्ट वास्तव में हर चीज़ लिखी हुई चीज़ों से ही शुरू होती है। इसलिए हमे लगता है कि हमे एक मौलिक रूप से काम करना चाहिए और जब मौलिकता की बात हो तो किताब सबसे बड़ा सहारा है। लोगो तक पहुंचनी चाहिए। मैं मानता हूँ किसी भी वेब सीरीज ,फिल्म या कोई भी डॉक्यूमेंट्री जो बनती है उसके पीछे जो सबसे महत्वपूर्ण चीज़ होती है वो है स्क्रिप्ट वास्तव में हर चीज़ लिखी हुई चीज़ों से ही शुरू होती है। इसलिए हमे लगता है कि हमे एक मौलिक रूप से काम करना चाहिए और जब मौलिकता की बात हो तो किताब सबसे बड़ा सहारा है। 


जिन लोगो ने अभी तक ये किताब नहीं पढ़ी हैं उन लोगो को एक पाठक के तौर पर ये किताब क्यों पढ़नी चाहिए ?


सुशील पोद्दार :किताब लिखने से पहले मेरे मन में भी यही प्रश्न था कि किताब लिखी जानी चाहिए या नहीं लिखी जानी चाहिए? और अगर लिखी जानी चाहिए तो दूसरा प्रश्न यह कि मैं अपने पाठकों को किताब के जरिये क्या देता हूँ ? ये दो प्रश्न सबसे पहले मेरे अंदर जगे। हम सभी किसी न किसी चुनौती से घिरे हैं आपके जीवन की अपनी समस्याएं हैं हमारी अपनी समस्याएं हैं बाक़िओं की अपनी , अब प्रश्न ये है कि उन समस्याओं से कैसे निपटा जाए। क्या जिस चुनौती का आप सामना कर रहे हैं वो आपको आपके अंदर कोई प्रतिभा ढूंढने में मददगार है ? आज हमारे समाज में कैंसर का एक रूढ़िबद्ध प्रारूप विकसित हो चूका है। लोगो को लगता है कैंसर हुआ है ठीक है इलाज़ होगा और अंत। लोगो को लगता है अंत हो जाएगा पर ये केवल एक मानसिकता है कैंसर होने से लेकर मौत के बिच में एक बहुत बड़ा जीवन काल होता है और उस जीवन काल में अपने आपको अपने अंदर तलाशना और तराशना होता है। ये किताब इसी चीज़ को बताता है कि जब आप किसी समस्या या कैंसर जैसी बिमारी से जूझते हैं आपके लिए जरुरी है उस समय में अपने आप को ढूंढ़ने की और तब आप अपने आप में एक नई प्रतिभा का संचालन कर सकेंगे तो यह किताब इसलिए पढ़ना चाहिए। ये किताब अगर देखा जाए तो डॉक्टर को भी पढ़ना चाहिए मुझे कई डॉक्टर्

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