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कविशाला संवाद 2021 :इरा टाक - 'मैं, 'हम' और 'हिंदी'

आधी बीत गयी ज़िन्दगी कोमुड़ कर देखने में

बाकी आधी गँवा दी

जिन को लेकर रोया

और जिनको लेकर खुश था

सब तो उधर ही छूट गया..

ले आया मैं दर्द

और पछतावा

अपनी आत्मा में समेटे हुए !

-इरा टाक


कविशाला संवाद कार्यक्रम में जुड़ी मशहूर चित्रकार ,लेखिका ,कवि और  फिल्म निर्देशक इरा टाक ,जिनकी दो शार्ट फिल्म्स फ्लिर्टिंग मेनिया और रैंबो को लन्दन की शॉर्ट्स टीवी कंपनी रिलीज़ करने जा रही है। इसके अलावा  इरा टाक चार शॉर्ट्स फिल्म बना चुकी हैं। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कई मसलों पर अपने विचार रखे और आज कल प्रचलितऑडियो प्लेटफॉर्म्स पर अपने विचार रखे। 


आज लेखनी और कला के दो मोर्चो पर आप एक साथ कार्य कर रही हैं,इस यात्रा की शुरुआत के बारे में कुछ बताएं?


इरा टाक : मुझे लगता है मैंने रंगो और शब्दों को नहीं चुना बल्कि उन्होंने मुझे चुना है ,मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं लेखिका या चित्रकार बनूँगी शायद ये मेरे प्रारब्ध में ही था। मैं अपने माता-पिता की एकलौती संतान थी ऐसे में अपनी भावनाओं को चित्र के ज़रिये उतार दिया करती थी अपने बातों-विचारों को डायरी में लिख लिया करती थी ,हालाँकि जैसा कि मैंने बताया भी मैंने कभी नहीं सोचा था की मैं चित्रकार या लेखक बनूँगी। इसके बाद २०११ में मैंने अपनी कुछ पेंटिंग सोशल मीडिया पर डाली जहाँ से एक अमेरिका में बिक गयी तो वो मैं कहूँगी मेरे जीवन का एक टर्निंग पॉइंट रहा। २०१२ में मेरी किताब प्रकाशित हुए और लेखनी का सिलसिला बढ़ता गया। चित्र कला लेखनी और फिल्म निर्देशन ये सारे कहीं न कहीं एक

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